अजमेर. संभल के बाद अब अजमेर शरीफ यानी ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरागाह को लेकर बवाल बढ़ गया है. इसको लेकर स्थानीय अदालत में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें कहा गया है कि यह दरागाह नहीं शिव मंदिर है. कोर्ट ने याचिका मंजूर कर सभी पक्षकारों को नोटिस भेजा है. नोटिस जारी होते ही हड़कंप मच गया है.
अजमेर दरागाह नहीं शिव मंदिर
बुधवार को अजमेर पश्चिम सिविल जज सीनियर डिविजन मनमोहन चंदेल की अदालत में अजमेर दरगाह केस को लेकर सुनवाई हुई. मामले के वादी हैं हिंदू सेना के विष्णु गुप्ता, उन्होंने वाद दायर कर दावा किया है कि यह पहले शिव मंदिर था. सुनवाई के बाद न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक विंग व एएसआई को नोटिस जारी करने के निर्देश दिये. इस मामले पर अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी.
यह विवाद कोई नया नहीं है. हिंदू संगठन लंबे समय से अजमेर दरगाह को मंदिर बता रहे हैं. दो साल पहले 2022 में महाराणा प्रताप सेना इसके मंदिर होने का दावा किया और काफी सबूत भी जुटाये. तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इसकी जांच कराने को कहा था. महाराणा प्रताप सेना के पदाधिकारियों ने सरकार को एक तस्वीर भी भेजी थी जिसमें ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में स्वास्तिक होने की बात कही गई थी.
आपको बता दें कि एक ऐसा ही विवाद इन दिनों उत्तर प्रदेश के संभल में चल रहा है. कोर्ट के आदेश पर 24 नवंबर को सर्वे करने गई टीम पर हुई गोलीबारी के दौरान 5 लोग मारे गये थे और पुलिस प्रशासन के कई बड़े अफसर घायल हो गये थे. दावा किया जा रहा है कि संभल में पहले हरिहर मंदिर था जिसे मुगल शासक बाबर ने तुड़वाकर जामा मस्जिद बनवा दिया. ASI बहुत पहले इसका सर्वेक्षण कर चुका है जिसमें मस्जिद में कई संकेत और अवशेष मिले थे जिसमें इसकी प्राचीनता और हिंदू मंदिर से जुड़े होने की ओर इशारा करते हैं. इस मामले में 29 नवंबर को सुनवाई होनी है.
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