देश-प्रदेश

Ajay Shukla Exclusive Column: हमारी आत्मा पथरा गई है शायद!

Ajay Shukla Exclusive Column: कश्मीर में जब तीन निर्दोष किशोरों को खूंखार आतंकी बताकर हमारी सेना मार डालती है, तब भी हम उसके जयकारे लगाते हैं. कानपुर पुलिस विकास दुबे के भतीजे अमर को नाटकीय ढंग से मार देती है. उसकी नाबालिग नवविवाहिता खुशी तिवारी को अवैध रूप से हफ्तों अपनी कैद में रखती है. इस दौरान उसके साथ क्या-क्या हुआ, यह वही जानती है. विकास के दो नाबालिग रिश्तेदारों को भी नाटकीय ढंग से मार दिया जाता है और फिर विकास को भी. हम तमाशाई बने रहते हैं. जब कठुआ में आठ साल की बच्ची से कई दिनों तक गैंगरेप होता है और वह दम तोड़ देती है, तब भी हम बगैर तथ्य जाने बलात्कारियों के लिए आंदोलन करते हैं. पालघर में बच्चा चोर गिरोह की अफवाह में तीन निर्दोष साधुओं की हत्या कर दी जाती है. हम सियासी एजेंडे के लिए सांप्रदायिक अफवाह फैलाते हैं. मथुरा और बुलंदशहर में साधुओं की हत्या पर चुप्पी साध जाते हैं. कोविड शिकार तब्लिगी जमात को हम खलनायक बनाकर समाज में घृणा पैदा करते हैं. जब मजदूर भूखे प्यासे पैदल सड़कों पर चलते दम तोड़ते हैं, तब हम रेसपी का लुत्फ उठाते सोशल मीडिया पर मस्ती करते हैं.

चुनावी साल में जब मथुरा का हेमराज कश्मीर में शहीद होता है, तो उसकी पत्नी धर्मवती से कहते हैं कि एक के बदले 10 सिर लाएंगे. सत्ता पाने के बाद हम उसकी सुध भी नहीं लेते. अब रोज उसी धरती पर किसी न किसी घर का लाल शहीद हो रहा है मगर हमें शर्म नहीं आती है. दुख भी नहीं होता है. चीनी सैनिक हमारे दो दर्जन सैनिकों को मार डालते हैं और हम उसे सियासी फायदे के लिए भुनाते हैं. सियासी एजेंडे के लिए निर्दोष सिने तारिका रिया चक्रवर्ती को हत्यारा, नशा तस्कर सहित न जाने क्या-क्या बना देते हैं. करौली में एसटी समुदाय का एक दबंग वहां के पुजारी को उसकी झोपड़ी सहित जला देता है. हम उसमें सियासी एंगल देखते हैं. गाजियाबाद में भाजपा विधायक के मामा को दौड़ाकर गोलियों से भून दिया जाता है. उस पर हम चुप्पी साध लेते हैं. वजह, आपराधिक घटनाओं पर भी हम और सियासी लोग अपनी सुविधा देखते हैं. जब उनके लोग फंसते हैं, तो चुप्पी साध लेते हैं, नहीं तो हमलावर.

हमने इन घटनाओं का जिक्र सिर्फ इसलिए किया, क्योंकि ये घटनाएं नजीर हैं. हाथरस की घटना का ही विश्लेषण कर लेते हैं कि हम या हमारी व्यवस्था कितनी संवेदनशील. 14 सितंबर की सुबह हाथरस की किशोरी से खेत में गैंगरेप होता है. पता चलते ही भाई अपनी बाइक से मां के साथ बदहवास बहन को सीधे थाने ले जाता है. थाने के चबूतरे पर पड़ी किशोरी बयान देती है कि उसके साथ जबरदस्ती हुई है. जिसका वीडियो रिकॉर्ड है मगर पुलिस किशोरी के भाई से मारपीट की तहरीर लिखवा लेती है. पीड़िता के बयान पर एफआईआर नहीं होती. एंबुलेंस जब नहीं आती तो परिजन टैंपो से बेटी को हाथरस जिला अस्पताल ले जाते हैं. जहां उसका एमएलसी नहीं होता, जबकि उसके ड्रिप भी चढ़ी और इंजेक्शन भी लगा. अस्पताल में भी पीड़िता पत्रकारों को बताती है कि उसके साथ जबरदस्ती हुई. डॉक्टर उसे रेफर कर देते हैं और उसका पिता शाम सवा चार बजे जेएलएन मेडिकल कालेज अस्पताल, अलीगढ़ उसे दाखिल कराता है. कोई पुलिस वाला साथ नहीं जाता है. तीन दिन बाद सीओ जब बयान लेने जाता है तो फिर पीड़िता अपने साथ हुई अश्लील हरकत के बारे में बताती है मगर पुलिस कुछ नहीं करती.

पीड़िता की हालत बिगड़ते देख डॉक्टर डाइंग डिक्लरेशन के लिए मजिस्ट्रेट बुलाते हैं. पीड़िता ने मजिस्ट्रेट को अपने साथ हुए गैंगरेप के बारे में बताया. उसने कहा कि दो लोगों ने उसके साथ रेप किया, जिसके बाद वो बेहोश हो गई थी. उसने दो और लोगों के भी नाम लिए और कहा कि बेहोश होने के बाद क्या हुआ, उसे याद नहीं है. तब कहीं 22 सितंबर को पीड़िता का मेडिकल होता है. मेडिकल में किशोरी के ‘वैजाइना में पेनिट्रेशन’ के साथ ही उससे ‘ताकत के इस्तेमाल’ का जिक्र है. अस्पताल ने तुरंत एफएसएल को पीड़िता की जांच के लिए लिखा मगर एफएसएल ने सैंपल 25 सितंबर को लिया. 29 सितंबर की सुबह सवा छह बजे पीड़िता की मौत हो गई. उसकी जीभ में चोट थी और गर्दन के पास रीढ़ की हड्डी टूटी हुई थी. पुलिस ने शव को कब्जे में ले लिया. बगैर परिवार के ही रात करीब ढाई बजे उसे जला दिया. वीडियो से स्पष्ट है कि पुलिस वाले ही शव जलाने की तैयारी कर रहे हैं और आग भी लगा रहे हैं.

फॉरेंसिक विशेषज्ञ और डाक्टरों का मानना है कि 96 घंटे बाद की गई मेडिकल जांच में रेप की पुष्टि करना संभव नहीं होता, तभी सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइन में कहा है कि अधिकतम 96 घंटों के अंदर नमूने लिए जाने चाहिए. यही कारण है कि इस घटना पर इतना शोर मचा है क्योंकि पुलिस ने पहले दिन से लेकर आखिरी दिन तक सब छिपाने-दबाने का काम किया. 11 दिन बाद मेडिकल हुआ. 22 सितंबर से जब इस घटना पर अधिक शोर मचा, तब भी सरकार सरकार आंखें बंद किये रही. मुलजिमों के बचाव के लिए भाजपा नेताओं के साथ ही अफसरशाही और पुलिस ढाल बनकर लग गई. किसी के दिल में यह पीड़ा नहीं थी कि बच्ची को इंसाफ दिलाया जाये. सभी इसी प्रयास में थे कि कैसे आरोपियों को बचाया जाये. यह सिर्फ एक घटना है.

ऐसी घटनायें देश में रोज घट रही हैं और पता भी नहीं चलता, अगर विरोधी दलों के नेता न आयें. सरकार ने तो इस घटना से बचाव के लिए विदेशी और सांप्रदायिकता षड़यंत्र का शिगूफा खड़ा कर दिया. उसने घटना पर पर्दादारी के लिए वह सब किया, जो किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं है. पुलिस और प्रशासनिक एजेंसियों ने सरकार की मंशा के अनुरूप डंडे और मुकदमे दर्ज किये. बेटियां सांझी होती हैं और उनकी इज्जत भी. जिस किसी के बेटियां होंगी, वही उनका दर्द समझ सकता है. दुख तब होता है, जब हम देखते हैं कि व्यवस्था बनाने के लिए जिस जनता के धन से सरकारी मुलाजिमों का जीवन संवरता है, वही स्वार्थ में जनता का जीवन बरबाद करते हैं और झूठ पर झूठ बोलते हैं. पूरी घटना की सीबीआई जांच की घोषणा के एक सप्ताह बाद भी न प्राथमिक जांच शुरू हुई न ही सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की, जबकि सुशांत केस में रातों रात सब हो गया था.

सरकार को ऐसी घटनाओं को सियासी-स्वार्थी चश्में से नहीं बल्कि संवेदना के साथ देखना चाहिए. ऐसा अपराध चाहे कठुआ की मुस्लिम बच्ची से हो या फिर हाथरस में दलित किशोरी से, या हैदराबाद में सवर्ण बेटी से. अपराध और अपराधी किसी जाति या धर्म के नहीं बल्कि मानवता के दुश्मन होते हैं. उन्हें उसी नजरिये से देखा जाना चाहिए. किसी अपराधी की बेटी, बहन, मां और पत्नी से भी अराजकता नहीं होनी चाहिए. जहां नारी का सम्मान नहीं, वह देश कभी विश्वगुरू नहीं बन सकता. दुख इस बात का है कि यह सब इसलिए घट रहा है क्योंकि हमारी संवेदनायें और संस्कार पथरा गये हैं. सोचिये, कि हम कहां और किस राह जा रहे हैं. जय हिंद.

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Aanchal Pandey

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