राष्ट्रपति चुनाव में केवल वीवी गिरी को सपोर्ट देने से ही कांग्रेस के गैर हिंदी भाषी राज्यों के नेताओं का सिंडिकेट इंदिरा गांधी के खिलाफ नहीं गया, बल्कि एक और बड़ी वजह थी और वो वजह थी इंदिरा गांधी के दो बड़े फैसले. एक तो बिना फाइनेंस मिनिस्टर मोरारजी को भरोसे में लिए बैंकों के नेशनलाइजेशन का फैसला लेना और दूसरा फैसले का ऐलान करने से ठीक तीन दिन पहले मोरारजी देसाई से वित्त मंत्री का पोर्टफोलियो ही छीन लेना.
नई दिल्लीः राष्ट्रपति चुनाव में केवल वीवी गिरी को सपोर्ट देने से ही कांग्रेस के गैर हिंदी भाषी राज्यों के नेताओं का सिंडिकेट इंदिरा गांधी के खिलाफ नहीं गया, बल्कि एक और बड़ी वजह थी और वो वजह थी इंदिरा गांधी के दो बड़े फैसले. एक तो बिना फाइनेंस मिनिस्टर मोरारजी को भरोसे में लिए बैंकों के नेशनलाइजेशन का फैसला लेना और दूसरा फैसले का ऐलान करने से ठीक तीन दिन पहले मोरारजी देसाई से वित्त मंत्री का पोर्टफोलियो ही छीन लेना.
16 जुलाई 1969 को मोरारजी से वित्त मंत्रालय वापस लिया गया और 19 जुलाई को इंदिरा ने 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया. करीब 70 फीसदी जमा इन बैंकों के पास ही थी. इनसे पहले केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ही नेशनलाइज्ड बैंक था. इंदिरा ने दावा किया कि इन निजी बैंकों में पब्लिक के निवेश की कोई गारंटी नहीं और केवल 3.2 फीसदी लोन ही किसानों को दिया जा रहा है.
इधर नाराज मोरारजी ने इंदिरा को खत लिखकर कहा कि आपको कोई परेशानी थी, तो मुझसे बात करतीं. इस तरह से तो एक क्लर्क को भी नहीं हटाया जाता. जाहिर है इंदिरा के दिमाग में एक खास योजना थी और वो जानती थीं कि इन सब फैसलों से क्या रिएक्शन होने वाला है. मोरारजी सिडिंकेट के नेताओं के काफी करीब आ चुके थे, लेकिन सिंडिकेट ने उस वक्त कोई भी बड़ा फैसला नहीं लिया, उन्हें इंतजार था अपने कैंडिडेट नीलम संजीव रेड्डी की राष्ट्रपति पद पर ताजपोशी का.
इन दो फैसलों के बाद इंदिरा गांधी के खिलाफ उनकी पार्टी ने लिया सबसे सख्त फैसला, जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो विष्णु शर्मा के साथ.