नई दिल्ली। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब मथुरा की विवादित ईदगाह मस्जिद परिसर को सील करने के लिए मथुरा कोर्ट में याचिका दायर की गई है। हिंदू याचिकाकर्ताओं का दावा है कि अगर परिसर को सील नहीं किया गया तो गर्भगृह और अन्य पुरातात्विक मंदिर के अवशेष क्षतिग्रस्त या हटाए जा सकते हैं। […]
नई दिल्ली। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब मथुरा की विवादित ईदगाह मस्जिद परिसर को सील करने के लिए मथुरा कोर्ट में याचिका दायर की गई है। हिंदू याचिकाकर्ताओं का दावा है कि अगर परिसर को सील नहीं किया गया तो गर्भगृह और अन्य पुरातात्विक मंदिर के अवशेष क्षतिग्रस्त या हटाए जा सकते हैं। अब कोर्ट तय करेगी की याचिका पर सुनवाई होगी या नहीं।
बता दें कि वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे के बाद मस्जिद का वजुखाना जिस जगह पर है उसे सील कर दिया गया है। जहां मस्जिद का वजूखाना है। ज्ञानवापी में सीलिंग की प्रक्रिया के बाद अब मथुरा की ईदगाह मस्जिद में भी सीलिंग की कार्रवाई की मांग उठने लगी है। इस संबंध में मथुरा के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में याचिका दायर की गई है।
हिंदू याचिकाकर्ताओं ने कहा, ‘ज्ञानवापी मस्जिद में जिस तरह से हिंदू शिवलिंग के अवशेष मिले हैं, स्थिति स्पष्ट हो गई कि वहां प्रतिवादी (मुस्लिम पक्ष) शुरू से ही इसी कारण से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह है श्री कृष्ण जन्मभूमि की स्थिति, जो असली गर्भगृह है। वहां पर सभी हिंदू धार्मिक अवशेष हिंदू धार्मिक प्रतीक और कमल, शेषनाग, उम, स्वस्तिक आदि जैसे अवशेष हैं, जिनमें से कुछ को मिटा दिया गया है।
वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर सोमवार को बड़ा दावा किया गया है. इस दावे में हिंदू पक्ष का कहना कि मस्जिद परिसर में शिवलिंग पाया गया है। जिसके बाद कोर्ट ने मस्जिद के इस हिस्से को सील करने का आदेश दे दिया। इसी बीच मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर मंगलवार यानी आज सुनवाई करेगा। वहीं मुस्लिम पक्ष की ओर से पूजा स्थल ‘विशेष प्रावधान’ अधिनियम 1991 के आधार पर दलीलें पेश कि गई है।
यह कानून तब सामने आया जब 1990 के समय अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन आगे बढ़ रहा था। तो उस समय सरकार को चिंता हुई थी कि विभिन्न धार्मिक स्थलों को लेकर देश में विवाद उत्पन्न हो सकता है। उस समय तत्कालीन सरकार ने 11 जुलाई 1991 में पूजा स्थल अधिनियम को पेश किया गया था। उसमें कहा गया कि अगस्त 1947 के समय जो भी धार्मिक स्थल जिस भी समुदाय का था. इस एक्ट के कारण रहेगा इससे अयोध्या केस को अलग रखा गया था। क्योंकि उस समय वह केस कोर्ट से लंबित था।