आखिर सजा पूरी होने से पहले नवजोत सिंह सिद्धू कैसे हुए रिहा?

नई दिल्ली: कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू आज शनिवार को जेल से रिहा हो गए। यह जानकारी सिद्धू के ट्विटर अकाउंट से दी गई है। आपको बता दें, सिद्धू को पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने तीन दशक पुराने रोड रेज मामले में एक साल की सजा सुनाई थी। सिद्धू तब से पटियाला जेल में थे। […]

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आखिर सजा पूरी होने से पहले नवजोत सिंह सिद्धू कैसे हुए रिहा?

Amisha Singh

  • April 1, 2023 10:38 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली: कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू आज शनिवार को जेल से रिहा हो गए। यह जानकारी सिद्धू के ट्विटर अकाउंट से दी गई है। आपको बता दें, सिद्धू को पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने तीन दशक पुराने रोड रेज मामले में एक साल की सजा सुनाई थी। सिद्धू तब से पटियाला जेल में थे। उनके वकील ने कहा कि पंजाब जेल के नियमों के मुताबिक अगर किसी कैदी का व्यवहार अच्छा है तो उसे सजा से पहले भी जल्दी रिहा किया जा सकता है।

 

➨ लेकिन समय से पहले, कैसे?

 

आपको बता दें, तय सजा खत्म होने से पहले जेल से रिहा होना कैदी के व्यवहार पर निर्भर करता है। अगर जेल में कैदी का व्यवहार अच्छा है तो उसे जल्दी रिहाई मिल जाती है। अगर किसी कैदी का व्यवहार अच्छा है तो उसकी सजा है महीने में 5- 7 दिन हटा दी जाती है। बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त को भी इसी आधार पर जेल में उनके अच्छे व्यवहार के कारण जल्दी रिहा कर दिया गया था।

• बता दें, संजय दत्त साल 1993 के मुंबई बम धमाकों के मामले में पुणे की यरवदा जेल में बंद थे। रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोई कैदी जेल में अच्छे से रहता तो उसे हर महीने 5 दिन की सजा की छूट मिलती है। सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को 20 मई को एक साल की सजा सुनाई थी। ऐसे में अभी इसकी रिलीज को डेढ़ महीना बाकी है। लेकिन उनके अच्छे व्यवहार के कारण उन्हें जल्दी रिहा किया गया है।

 

➨ फरलो और परोल पर भी होते हैं रिहा

• कारागार में कैदियों को समय-समय पर छुट्टी पर या यहां तक ​​कि कुछ समय के लिए हिरासत से भी रिहा किया जाता है। फरलो और पैरोल दो अलग-अलग चीजें हैं। दोनों का उल्लेख कारागार अधिनियम 1894 में किया गया था। फरलो केवल सजायाफ्ता कैदियों को ही दिया जाता है। जबकि परोल पर किसी भी कैदी को कुछ दिनों के लिए रिहा किया जा सकता है। फरलो एक छुट्टी की तरह है, जिसमें कैदी को कुछ दिनों के लिए रिहा कर दिया जाता है।

• फरलो की अवधि को कैदी की सजा और उसके अधिकारों की शेष अवधि माना जाता है। फरलो केवल सजायाफ्ता कैदियों को ही दिया जाता है। एक सजायाफ्ता कैदी को आमतौर पर पैरोल की लंबी अवधि के लिए रिहा किया जाता है। मकसद यह है कि कैदी अपने परिवार और समुदाय से मिल सके। यह बिना कारण के दिया जा सकता है। चूंकि जेल एक राज्य का विषय है, इसलिए प्रत्येक राज्य में फरलो के संबंध में अलग-अलग कानून हैं।

• जानकारी के लिए बता दें, उत्तर प्रदेश में फरलो का प्रावधान नहीं है। वैसे फरलो के लिए किसीकारण की जरूरत नहीं होती। लेकिन परोल के लिए कोई कारण होना जरूरी है। मसलन परोल की अनुमति तभी दी जाती है जब कैदी के परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है, सगे रिश्तेदार की शादी या कोई अन्य महत्वपूर्ण कारण होता है। किसी कैदी को किसी भी परिस्थिति में परोल करने से मना किया जा सकता है। अधिकारी यह कहकर मना कर सकता है कि कैदी को परोल पर रिहा करना जनहित में नहीं है।

 

➨ परोल और फरलो कब नहीं मिलता है ?

सितंबर 2020 में, केंद्रीय गृह कार्यालय ने परोल फरलो पर कुछ गाइडलाइंस जारी की थी। इस मामले में गृह मंत्रालय ने कहा कि पैरोल और फरलो की अनुमति कब किसी को नहीं दी जाएगी?

• ऐसे कैदी जिनकी समाज में उपस्थिति खतरनाक है या जिनकी उपस्थिति से सार्वजनिक शांति भंग हो सकती है, उन्हें अनुमति नहीं दी जाएगी।

• जेलों में हिंसा से संबंधित अपराधों जैसे मारपीट, उकसाने, अपराध या भागने के प्रयास में शामिल कैदियों को रिहा नहीं किया जाएगा।

• डकैती, आतंकवाद, फिरौती के लिए अपहरण, व्यावसायिक रूप में मादक पदार्थों की तस्करी जैसे गंभीर अपराधों के लिए सजायाफ्ता या आरोपित कैदी को रिहा नहीं किया जाएगा।

• ऐसे कैदी जिनके परोल या फरलो की अवधि पूरी होने पर भाग जाने का शक हो ऐसे कैदियों को रिहा नहीं किया जाएगा।

• यौन अपराध, हत्या, बाल अपहरण और हिंसा जैसे गंभीर अपराधों के मामले में, सारे तथ्यों को ध्यान में रखकर परोल या फरलो देने का फैसला किया जाएगा।

 

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