नई दिल्ली : लोकसभा का चुनाव होने में एक वर्ष से भी कम समय बचा हुआ है. लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी पार्टी एकजुट हो रही है. पटना में विपक्षी दलों की बैठक हो गई है. बेंगलुरु में 17 और 18 जुलाई को विपक्ष की बैठक होगी. इस बैठक में 24 दल शामिल हो रहे […]
नई दिल्ली : लोकसभा का चुनाव होने में एक वर्ष से भी कम समय बचा हुआ है. लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी पार्टी एकजुट हो रही है. पटना में विपक्षी दलों की बैठक हो गई है. बेंगलुरु में 17 और 18 जुलाई को विपक्ष की बैठक होगी. इस बैठक में 24 दल शामिल हो रहे है. विपक्ष की बैठक से पहले आम आदमी पार्टी ने आज अहम बैठक बुलाई है. बेंगलुरु में होने वाली बैठक में AAP हिस्सा लेगी की नहीं अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है. इस बैठक में शामिल होना है कि नहीं आम आदमी पार्टी आज बैठक में फैसला करेगी.
आज शाम को 7 बजे AAP की (पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी) की बैठक बुलाई है. इस बैठक में पंजाब के सीएम भगवंत मान वर्चुअल माध्यम से जुड़ेंगे. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस अभी तक अध्यादेश पर अपना रूख साफ नहीं किया है इसलिए आम आदमी पार्टी का आलाकमान नाराज चल रहा है और बेंगलुरु में होने वाली विपक्ष की बैठक का बहिष्कार कर सकते है.
लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल तैयारियां शुरु कर दिए हैं. अब एनडीए सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता की कवायद तेज हो गई है. बेंगलुरु में 17 जुलाई को विपक्षी दलों की बैठक होनी है, इससे पहले पिछले महिने 23 जून को पटना में नीतीश कुमार के नेतृतव में मीटींग हुई थी. जिसमें कांग्रेस, जेडयू, राजद, सपा समेत 17 दलों ने हिस्सा लिया था. इस बैठक में 8 नए दलों को न्योता भेजा गया है. बैठक के बाद कांग्रेस की तरफ से रात्रिभोज का आयोजन किया जाएगा. बैठक 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में होगी जिसमें इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और आम आदमी पार्टी को भी न्योता दिया गया है.
अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए केंद्र सरकार द्वारा ला रहे अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली सरकार ने सभी विपक्षी पार्टियों से समर्थन मांगा है. AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से भी समर्थन मांगा था लेकिन कांग्रेस का रुख साफ न होने की वजह से अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से नाराज चल रहे है और कांग्रेस को अपना रुख साफ करने को कहा है. 23 जून को पटना में हुए विपक्ष कि बैठक में अरविंद केजरीवाल मीडीया से मुखातिब हुए बिना चले गए थे और साझा बयान भी जारी नही किया था. अगर अरविंद केजरीवाल नही माने तो विपक्षी एकता के लिए नुकसान होगा.
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