आप के 20 विधायकों पर लाभ का पद की तलवार, 16 और कतार में, कहीं अरविंद केजरीवाल बुरे तो नहीं फंसे ?

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के 20 विधायक संसदीय सचिव बनाने की वजह से लाभ के पद में फंसकर अपनी विधायकी गंवाने की कगार पर हैं. चुनाव आयोग ने इनकी विधानसभा सदस्यता खत्म करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दी है जो इस पर फैसला लेंगे. केजरीवाल की मुश्किल आगे और बढ़ेंगी क्योंकि इसके बाद चुनाव आयोग 27 ऐसे विधायकों पर वकील विभोर आनंद द्वारा लगाए लाभ के पद के आरोप की जांच करेगा जिन्हें रोगी कल्याण समिति का अध्यक्ष बनाया गया है. विभोर आनंद ने इस पद को लाभ का पद बताते हुए इनकी सदस्यता खत्म करने की मांग की है जो शिकायत राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग को भेज रखी है. रोगी कल्याण समिति का चेयरमैन बनाए गए लोगों में विधानसभा के स्पीकर, डिप्टी स्पीकर समेत 10 ऐसे विधायक भी हैं जो संसदीय सचिव होने के नाते विधायकी गंवाने वाले हैं. मतलब अगर ये 20 हटाए गए तो फिर अगले 17 विधायकों पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट की तलवार लटक जाएगी.

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आप के 20 विधायकों पर लाभ का पद की तलवार, 16 और कतार में, कहीं अरविंद केजरीवाल बुरे तो नहीं फंसे ?

Aanchal Pandey

  • January 19, 2018 10:56 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सचमुच बुरी तरह फंसी दिख रही है. एक झटके में 20 विधायकों की सदस्यता पर लाभ के पद की तलवार लटक चुकी है. पार्टी के 16 और विधायक भी चुनाव आयोग के सामने कतार में हैं. इनकी गर्दन भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के चक्कर में फंसी हुई है. 20 विधायकों की विधायकी खत्म कराने की सिफारिश चुनाव आयोग से राष्ट्रपति भवन भिजवाने वाले वकील प्रशांत पटेल उमरांव ने 2015 में ये मामला उठाया था. जून, 2016 में कानून के छात्र विभोर आनंद ने राष्ट्रपति को याचिका देकर आरोप लगाया था कि आम आदमी पार्टी ने अपने 27 विधायकों को रोगी कल्याण समिति का अध्यक्ष बनाया है. विभोर का दावा था कि रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष का पद भी लाभ का पद है.

जिन 27 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की याचिका विभोर आनंद ने दी थी उनमें से 10 विधायकों को केजरीवाल ने संसदीय सचिव बना रखा था और उनकी सदस्यता रद्द करने की सुनवाई पहले से चल रही थी. एक और विधायक वेद प्रकाश ने इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर लिया था. राष्ट्रपति ने रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष बने विधायकों के खिलाफ याचिका भी चुनाव आयोग को भेज दी. चुनाव आयोग ने 2 नवंबर 2016 को सभी विधायकों को नोटिस जारी करके जवाब भी तलब किया. चूंकि संसदीय सचिवों का बवाल ज्यादा बड़ा था और उसकी सुनवाई काफी आगे बढ़ चुकी थी, लिहाज़ा रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष बने विधायकों का प्रकरण ठंडे बस्ते में चला गया.

अब संसदीय सचिव बने 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश हो चुकी है तो सबको उन 16 विधायकों का मामला भी याद आने लगा है, जिन पर लाभ के पद की सुनवाई लंबित है. जिन विधायकों को रोगी कल्याण समिति का अध्यक्ष बनाया गया, उनमें दिल्ली विधानसभा के स्पीकर राम निवास गोयल, विधानसभा की डिप्टी स्पीकर राखी बिड़लान, पूर्व स्पीकर और शालीमार बाग की विधायक बंदना कुमारी, बादली के विधायक अजेश यादव, हरिनगर के विधायक जगदीप सिंह, कृष्णानगर के विधायक एस के बग्गा, त्रिनगर के विधायक और फर्जी डिग्री मामले में बर्खास्त किए गए पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर, करोलबाग के विधायक विशेष रवि, मालवीय नगर के विधायक सोमनाथ भारती, सीमापुरी के विधायक राजेंद्र पाल गौतम, योगेंद्र यादव के समर्थन में पार्टी से बगावत करने वाले तिमारपुर के विधायक पंकज पुष्कर, पटेल नगर के विधायक हजारीलाल चौहान, सीलमपुर के विधायक मोहम्मद इशराक, दिल्ली कैंट के विधायक कमांडो सुरेंदर, रिठाला के विधायक महेंद्र गोयल शामिल हैं. इस लिस्ट में नाम तो बवाना के विधायक वेद प्रकाश का भी था लेकिन एमसीडी चुनाव के दौरान उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया. बवाना सीट पर उपचुनाव में आम आदमी पार्टी को जीत मिली थी.

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अब अगर चुनाव आयोग ने रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष पद पर तैनात विधायकों की सदस्यता पर भी कठोर फैसला किया तो देश के इतिहास में अभूतपूर्व हालात पैदा हो सकते हैं. पहली बार किसी राज्य में 50 फीसदी से ज्यादा सीटों पर उपचुनाव की नौबत आ सकती है. पहली बार ऐसा हो सकता कि किसी विधानसभा में स्पीकर, डिप्टी स्पीकर तक की सदस्यता एक साथ रद्द हो जाए और ये नौबत भी देश में पहली बार आ सकती है कि विधानसभा चुनाव में 95 फीसदी सीटें जीतने वाली पार्टी आधा कार्यकाल बीतते-बीतते बहुमत से भी कम के आंकड़े पर सिमट जाए, उसे बहुमत के लिए उपचुनाव में जीतने की मजबूरी झेलनी पड़े.

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फिलहाल ये दूर की कौड़ी जैसा है लेकिन सोचिए कि अगर 20 विधायकों के बाद 16 और विधायकों की सदस्यता भी लाभ के पद के चक्कर में चली जाए तो दिल्ली विधानसभा की तस्वीर कैसी होगी? केजरीवाल की पार्टी में अभी 64 विधायक (विधानसभा स्पीकर समेत) हैं. 36 विधायकों के अयोग्य होने के बाद उनके पास 28 विधायक बचेंगे, जिनमें बाग़ी हो चुके कपिल मिश्रा, दागी होकर नज़रों से दूर चल रहे संदीप कुमार, केजरीवाल की नीति-रीति से नाराज़ चल रहे कर्नल देवेंद्र सहरावत भी शामिल हैं.

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यानी केजरीवाल के पास सिर्फ 25 विधायक ऐसे बचेंगे, जिन पर वो भरोसा कर सकते हैं. ऐसी नौबत आई तो उन्हें 36 में से कम से कम 11 सीटें जीतनी होंगी, वरना कुर्सी खिसक जाएगी. 11 सीटें जीतने के बाद उन्हें चौबीसों घंटे अपने विधायकों पर नज़र रखना पड़ेगा कि क्या पता, कब, कौन विधायक पाला बदल ले.

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