नई दिल्ली। Madhya Pradesh High Court: ‘लिव-इन’ में रहने वाली महिला को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भरण-पोषण का अधिकारी माना है। न्यायमूर्ति जीएस आहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने एक आदेश में कहा कि किसी व्यक्ति के साथ लंबे समय तक लिव-इन में रहने वाली महिला अलग होने पर भरण-पोषण पाने की हकदार है, कानूनी रूप से भले ही वो विवाहित न हो।
दरअसल, बालाघाट निवासी शैलेश बोपचे ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर निचली अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उसकी लिव-इन पार्टनर को 15 सौ रुपए का मासिक भत्ता देने का आदेश दिया गया था। बता दें कि बोपचे ने आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि जिला अदालत ने माना था कि महिला (जो दावा करती है कि उसकी पत्नी है) यह साबित नहीं कर पाई कि उन्होंने मंदिर में शादी की थी।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस आहलूवालिया की सिंगल बेंच ने कहा कि इस मामले में दोनों पति-पत्नी के रूप में लंबे समय से साथ रह रहे थे। दोनों की अपने रिश्ते से एक बच्चा भी है। ट्रायल कोर्ट में ये साबित नहीं हुआ है कि महिला ने याचिकाकर्ता के साथ कानूनी रूप से विवाह किया है, इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट द्वारा भरण-पोषण देने का फैसला पूरी तरह सही है। उच्च न्यायालय ने शैलेश बोपचे की याचिका को रद्द कर दिया।
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