नई दिल्ली। भगवान गणेश की उपासना और साधना का महापर्व यानि गणशोत्सव आज से प्रारंभ हो गया है। ये उत्सव 9 सितंबर तक चलेगा। बता दें कि इस बार की गणेश चुतुर्थी पर 300 साल के बाद दुर्लभ संयोग बन रहा है। भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की ये गणेश चतुर्थी बहुत ही खास और बप्पा के भक्तों को शुभ फल देने वाली है।
दरअसल इस बार की गणेश चतुर्थी तिथि पर वही शुभ योग और संयोग बना हुआ है जो भगवान गणेश जी की जन्म के समय बना था। गणपति बप्पा का जन्म बुधवार के दिन, चतुर्थी तिथि, चित्रा नक्षत्र में हुआ था। इसके साथ ही 31 अगस्त और 9 सितंबर तक गणेश उत्सव के बीच और भी कई शुभ और मंगलकारी योग बन रहे हैं।
● गणपति बप्पा की प्रतिमा पर तुलसी और शंख से जल न चढ़ाएं।
● दुर्वा (दूब) और मोदक के बिना गणेश जी की पूजा अधूरी रहती है।
● गणपति बप्पा के पसंदीदा फूल जाती, मल्लिका, कनेर, कमल, चंपा, मौलश्री, गेंदा व गुलाब
● भगवान गणेश के पसंदीदा पत्ते शमी, दुर्वा, धतूरा, कनेर, केला, बेर, मदार और बिल्व पत्र
● पूजा में नीले और काले रंग के कपड़े न पहनें।
● चमड़े की चीजें बाहर रखकर पूजा करें और भगवान गणेश को अकेले न छोड़ें।
● स्थापना के बाद गणपति बप्पा की मूर्ति को इधर-उधर न रखें, यानी हिलाएं नहीं।
गणेश जी स्थापना के लिए आपको कुछ चीजों को ध्यान रखना होगा। सबसे पहले आप स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनकर पूजा स्थल की सफाई कर लें। इसके बाद एक चौकी तैयार करके उसके ऊपर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछा लें। फिर चौकी पर गणपति बप्पा को स्थापित कर दें।
गणपति बप्पा की मूतर्ति स्थापना के बाद आप उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद गणेश जी को वस्त्र अर्पित करें, फिर उन्हें तिलक लगाएं और अक्षत चढ़ाएं। इसके बाद गणपति जी भोग चढ़ाए, फिर गणेश चालीसा का पाठ करें और बप्पा की आरती करें। बता दें कि भगवान गणेश की पूजा करते समय उन्हें दूर्वा जरूर अर्पित करें। दूर्वा के बिना आपकी पूजा अधूरी मानी जाएगी।
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