जजों की नियुक्ति प्रक्रिया और कोलेजियम सिस्टम को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच फिर ठन गई है. केंद्र ने उस प्रक्रिया का मसौदा ज्ञापन पत्र बनाने से साफ इनकार कर दिया, जिसका पालन सर्वोच्च अदालत कोलेजियम उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए करेगा.
नई दिल्ली. जजों की नियुक्ति प्रक्रिया और कोलेजियम सिस्टम को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच फिर ठन गई है. केंद्र ने उस प्रक्रिया का मसौदा ज्ञापन पत्र बनाने से साफ इनकार कर दिया, जिसका पालन सर्वोच्च अदालत कोलेजियम उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए करेगा.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने कोलेजियम सिस्टम में सुधार के मुद्दे पर सभी सुझावों पर विचार करने के बाद उच्चतर न्यायपालिका में जजों की भावी नियुक्तियों के लिए सरकार को एक मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर यानि एमओपी का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी थी.
इस मुद्दे पर अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी का कहना है कि सरकार जजों की नियुक्ति प्रक्रिया के लिए एमओपी का मसौदा तैयार नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वह केंद्र को मौजूदा कोलेजियम सिस्टम में सुधार के लिए जरूरी निर्देश दे.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को दिए गए निर्देश का वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने जोरदार विरोध किया था. सुब्रह्मण्यम का कहना था कि सुझाव का स्वागत है, लेकिन कार्यपालिका को मसौदा मेमोरेंडम भी तैयार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर का मसौदा तैयार करने की बड़ी जिम्मेदारी सरकार को सौंपी है.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम और 99वें संविधान संशोधन को निरस्त करने वाले फैसले का हवाला दिया और कहा कि उनकी आपत्ति का मुख्य कारण न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करने का प्रयास है और इसलिए कार्यपालिका को अब भूमिका नहीं दी जा सकती.
वहीं जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ का कहना है कि सुब्रह्मण्यम जल्दबाजी कर रहे हैं. वे एमओपी जारी करने नहीं जा रहे हैं. हर कोई पारदर्शिता की मांग कर रहा है और कोई पक्ष नहीं है. सरकार भी इसे पारदर्शी और व्यापक बनाना चाहती है. हम सिर्फ उनकी राय ले रहे हैं क्योंकि वे अहम हिस्सेदार हैं