नई दिल्ली: अधिकतर प्रोफेसर रिटायर होने के बाद आराम और सुकून की जिंदगी जीने का तय करते हैं, यही नहीं इसके अलावा बेहतर से बेहतर जगहों पर जाने के लिए सोचते हैं, लेकिन आज हम एक ऐसे प्रोफेसर के बारे में बताएंगे, जो 93 साल की उम्र में आज भी फिजिक्स की क्लास लेती हैं, […]
नई दिल्ली: अधिकतर प्रोफेसर रिटायर होने के बाद आराम और सुकून की जिंदगी जीने का तय करते हैं, यही नहीं इसके अलावा बेहतर से बेहतर जगहों पर जाने के लिए सोचते हैं, लेकिन आज हम एक ऐसे प्रोफेसर के बारे में बताएंगे, जो 93 साल की उम्र में आज भी फिजिक्स की क्लास लेती हैं, टीचिंग उनके जीवन का एक उद्देश्य है।
संथम्मा का जन्म 8 मार्च 1929 को आंध्र प्रदेश में हुआ था, 60 साल की उम्र में रिटायर हुई. हालांकि अपने रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने पढ़ाना जारी रखने का फैसला किया और अब सात दशकों से युवा मन को प्रेरित कर रही है. 93 साल की उम्र में पढ़ाने के अपने जुनून को बरकरार रखने के लिए प्रतिदिन विजाग से विजयनगरम तक 60 किलोमीटर का ट्रेवल करती हैं. वह आंध्र प्रदेश सेंचुरियन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स की क्लास लेती हैं।
संथम्मा की मां वनजक्षम्मा 104 साल की उम्र तक जीवित रही. इस उम्र को देखते हुए वह वास्तव में दुनिया की सबसे उम्र दराज प्रोफेसर है. उन्होंने फिजिक्स में बीएससी ऑनर्स और आंध्र विश्वविद्यालय से माइक्रोवेव स्पेक्ट्रोस्कोपी में डीएससी (डॉक्टर ऑफ साइंस) की उपाधि प्राप्त की है।
इस लंबे सफर में उन्होंने कई भूमिकाएं निभाई है. केंद्र सरकार के भिन्न-भिन्न विभागों में लेक्चर, प्रोफ़ेसर, रीडर और कई यूनिवर्सिटीज में इनविजिलेटर के तौर पर रही है. यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को परमाणु स्पेक्ट्रोस्कोपी और आणविक स्पेक्ट्रोस्कोपी के अपने विश्लेषण के लिए कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं. 2016 में वयोवृद्ध वैज्ञानिक वर्ग में गोल्ड मेडल भी अपने नाम दर्ज किया है. उन्होंने पुराणों, वेदों और उपनिषदों पर गहरी अध्ययन करके एक किताब भी लिखी है।
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