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9 Years Of Modi Government: मोदी शासन के वो 9 फैसले, जिनका खूब हुआ विरोध

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री नौ साल पूरे कर लिए हैं। इस दौरान देश ने कई सकारात्मक बदलाव देखे हैं। मोदी विश्व नेता (Global Leader) के रूप में उभरे हैं। दुनिया भर में भारत की साख बढ़ी है। भारत आवश्यकता पड़ने पर आक्रामक तो हुआ ही, कई बार तटस्थ भी माना गया है। […]

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9 Years Of Modi Government: मोदी शासन के वो 9 फैसले, जिनका खूब हुआ विरोध
  • June 1, 2023 4:32 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री नौ साल पूरे कर लिए हैं। इस दौरान देश ने कई सकारात्मक बदलाव देखे हैं। मोदी विश्व नेता (Global Leader) के रूप में उभरे हैं। दुनिया भर में भारत की साख बढ़ी है। भारत आवश्यकता पड़ने पर आक्रामक तो हुआ ही, कई बार तटस्थ भी माना गया है।

कई बार सरकार ने अपने फैसलों को वापिस भी लिया, तो वहीं कई बार केंद्र सरकार ने कुछ ऐसे भी फैसले लिए जिन्हें खूब चुनौती दी गई… जिनपर तीखे सवाल भी उठे। आज हम केंद्र सरकार के नौ साल पूरे होने पर ऐसे नौ फैसलों की चर्चा करेंगे जिनका खूब विरोध किया गया। कई बार आम जनता ने विरोध किया तो कुछ राजनीतिक दलों की तरफ से हल्ला हुआ।

 

1. लॉकडाउन (Lockdown)

With clapping, bell ringing, India unites to thank coronavirus fighters | Latest News India - Hindustan Times

साल 2020 की शुरुआत में ही कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी थी। प्रधानमंत्री मोदी 19 मार्च को TV पर आए और 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की अपील की। उन्होंने सभी से कहा कि वे घर से बाहर न निकलें। पूरे देश ने प्रधानमंत्री की अपील सुनी और देखते ही देखते सड़कों पर सन्नाटा पसर गया। दो दिन बाद यानी 24 मार्च को 21 दिन के लिए देश भर में लॉक डाउन का ऐलान किया गया। देश इस फैसले के लिए तैयार नहीं था। सब जगह सब कुछ ठप हो गया। परदेश में गरीब और मजदूर भूखे रह गए। जब सब कुछ बंद हो गया तो लोग दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों से अपने-अपने शहरों की ओर पैदल ही चलने लगे। पुलिस के डंडे और लाठियों से बचते-बचाते लोग अपने घर की तरफ निकल गए। लोगों के पैरों में छाले तक पड़े। इसके बाद सरकार ने थोड़ी ढील दी। प्रशासन इंतजाम भी किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

 

2. कृषि कानून (Farm Laws)

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केंद्र सरकार ने सितंबर 2020 में न सिर्फ किसानों के हित में संसद में तीन कानून पेश किए, बल्कि तीन दिन में उन्हें पारित कर कानूनों में तब्दील कर दिया। बाद में पंजाब के किसानों ने आंदोलन शुरू किया और जल्द ही यह आंदोलन इतना बढ़ गया कि दिल्ली के आसपास की सड़कों पर सिर्फ किसान ही नजर आने लगे। राजनीतिक दलों ने भी इस आंदोलन को भरपूर ताकत झोंक दी, इसलिए किसान भी पीछे हटने को तैयार नहीं थे। व्यवस्था ने इस आंदोलन को पटरी से उतारने के कई प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो पाई। भीड़ दिन पर दिन बढ़ती चली गई। महीनों की उथल-पुथल के बाद, आखिरकार मोदी सरकार ने कानून वापस ले लिया।

 

3. जीएसटी (GST )

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एक देश-एक टैक्स (One Country One Tax) के नाम पर से केंद्र सरकार ने 1 जुलाई, 2017 को GST लागू किया। इसे लेकर आज भी विवाद है। GST में लगातार बदलाव हो रहे हैं। वे इतनी तेजी से हो रहे हैं कि CA तक कन्फ्यूज हैं। कई बार उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं होता कि क्लाइंट के लिए क्या फैसला जाए। डीजल-पेट्रोल जैसी चीजें अभी GST के दायरे से बाहर हैं। इस जुलाई में इस व्यवस्था को लागू हुए छह साल होने वाले हैं। बहुत विरोध और विवाद के बीच यह व्यवस्था लागू हुई है। इसका सबसे बड़ा असर कारोबारी और व्यापारी वर्ग पर हुआ है। इस फैसले के बाद बिज़नेसमेन को अनेक प्रकार के हिसाब-किताब रखने पड़ते हैं।

 

4. नोटबंदी (Demonetisation)

8 नवंबर 2016 की रात प्रधानमंत्री अचानक TV पर दिखाई दिए और 1000-500 के नोट बंद करने का फैसला सुना दिया। तर्क दिया गया कि इस कदम से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी। काले धन पर रोक लगेगी। यह सब तो नहीं हुआ है लेकिन बैंकों में महीनों तक लंबी कतारें लग गई। लोगों को शादी वगैरह के लिए भी पैसा निकालने में दिक्कतें आई हैं। आम जनता से लेकर राजनीतिक दलों ने सरकार के इस फैसले की कड़ी निंदा की। सरकार की उस वक़्त खूब किरकिरी हुई लेकिन इस बीच जनता की समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार ने दो हजार के नोट जारी किए, जिन्हें अब एक बार फिर से बंद करने का फैसला किया गया है। जनता अब पूरे मामले पर खामोश है या यूं कहें कि भूल चुकी है, लेकिन राजनीतिक दल अभी भी हमलावर हैं।

 

5. सीएए-एनआरसी (CAA-NRC)

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दिसंबर 2019 में केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill) पेश किया था। इसके अनुसार पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान आदि से धार्मिक उत्पीड़न के बाद आए हिंदू, सिख, बौद्ध और पारसी समुदायों को नागरिकता देने की व्यवस्था की बात कही गई थी। इस कानून के खिलाफ विरोध असम से शुरू हुआ और दिल्ली पहुंचा। यह आंदोलन भी महीनों चला। थोड़े ही समय में राजनीतिक समर्थन मिलने के बाद यह पूरे देश में फैल गया। चूंकि यह सुविधा मुस्लिम समुदाय के लिए नहीं थी, इसलिए विरोध के स्वर तेज हो गए। कड़े विरोध के बाद, प्रधान मंत्री ने आबादी को आश्वासन दिया कि ये कानून किसी की नागरिकता नहीं हटाएंगे। इस कारण कानून आने के बाद भी इसे लागू नहीं किया गया।

 

6. तीन तलाक (Triple Talaq)

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केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के हित में तीन तलाक कानून लागू किया, जिसके तहत तीन तलाक को अपराध बनाया गया. कुछ राजनीतिक दलों, मुस्लिम समुदाय और मौलवियों ने इसका कड़ा विरोध किया, लेकिन आगे बढ़ती महिलाओं ने इस फैसले की सराहना की और इसका साथ दिया। जानकारी के लिए बता दें, साल 2019 में ट्रिपल तलाक को लेकर संसद में कानून बनाया गया था। जब कोई भी शख्स अपनी बीवी को एक बार में तीन तलाक़ बोल देता है या फ़ोन, मेसेज या खत के ज़रिए तीन तलाक़ दे देता है तो इसे तलाक़ नहीं माना जाएगा बल्कि ऐसा करने पर 3 साल की सजा का कानून है।

 

7. धारा 370 और 35 ए (Article 370 and 35A)

इसे मोदी सरकार के कड़े फैसलों में से एक माना जाता है, जिसका लोग आज भी विरोध करते हैं। धारा 370 के तहत कश्मीरी लोगों को खास अधिकार मिले हुए थे, उसे समाप्त कर सरकार ने एक देश की नीति, एक कानून का पालन किया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख नामक दो केंद्र शासित प्रदेश सुर्ख़ियों में आए। केंद्र के इस फैसले का स्थानीय राजनीतिक दलों ने कड़ा विरोध किया, जो आज भी जारी है। पहले इन राज्यों के नागरिकों को कुछ ऐसे अधिकार और सुविधाएं दी जाती थी जो देश के बाकी हिस्सों से अलग थी। लेकिन इस क़ानून के आने के बाद यह खत्म हो गया।

 

8. गलवान घाटी ( Air Strike & Surgical Strike)

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गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ संघर्ष में हमारे 20 जवान शहीद हुए और वहां के 30 जवान शहीद हुए। उरी हमले के बाद, भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुस गए और बड़ी तादाद में आतंकवादियों का सफाया कर दिया और पुलवामा के बाद के सर्जिकल हमले में पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकवादी ठिकानों का खात्मा किया। राजनीतिक दलों ने लंबे समय तक इन तीनों मामलों का विरोध किया। इस पर खूब सवाल उठाए गए लेकिन अब आलम ऐसा है कि सत्ता-विपक्ष के लिए अब ये मुद्दे जवाबी कीर्तन बने हुए हैं।

 

9. नया संसद भवन (New Parliament House)

काफी सालों से केंद्र सरकार नए संसद भवन का शिलान्यास कर रही थी और 28 मई को इसका उद्घाटन किया गया। शिलान्यास से लेकर आज तक राजनीतिक दल इस भवन का विरोध करने में लगे हैं। कुछ का मानना था कि यह इमारत अनावश्यक थी, जबकि अन्य का कहना है कि जब देश एक महामारी की चपेट में था, तो सरकार को इन सब पर ध्यान नहीं देना चाहिए था। इन्हीं विरोधी कारणों से, लगभग 20 विपक्षी दलों ने नए संसद भवन उद्घाटन समारोह में भाग नहीं लिया। विपक्ष की मांग थी कि संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति करें।

 

➨ अब क्या है मोदी सरकार का अगला कदम

अब प्रधानमंत्री मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश की अर्थव्यवस्था को चालू रखने की है। पहले कोरोना महामारी और फिर रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने दुनिया भर में आर्थिक मंदी की आशंका पैदा कर दी। बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हिल रही हैं। अमेरिका भी डिफ़ॉल्ट के कगार पर है। दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है। पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं। अब प्रधानमंत्री मोदी को इन सभी चुनौतियों से पार पाना है।

 

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