ओडिशा: दलित बच्चों को दीं जातिगत गालियां, फिर किया सामाजिक बहिष्कार

भुवनेश्वर. ओडिशा के केंद्रापारा में जातिगत भेदभाव से तंग आकर कुछ दलितों के प्रशासन से शिकायत करने के बाद अब उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है. असल में एक दलित लड़की के गणेश पूजा उत्सव में शामिल होने और दलित बच्चों के साथ हेडमास्टर के दुर्व्यवहार के बाद विवाद शुरू हुआ. दलितों ने पुलिस से इसकी शिकायत की जिसके बदले में सवर्णों ने दलितों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया.
क्या है मामला
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक बंदेमातरम हाई स्कूल में एक दलित लड़की का गणेश पूजा उत्सव में भगवान को नारियल चढ़ाना स्कूल की बाकी दलित बच्चियों को भी महंगा पड़ गया. इसकी सजा के तौर पर स्कूल के करीब 20 दलित बच्चों को पूजा में शामिल नहीं होने दिया गया. सिर्फ इतना ही नहीं दलित बच्चे पूजा में शामिल न हो सकें इसके लिए स्कूल हेडमास्टर ने उन्हें स्कूल के एक कमरे में करीब 5 घंटे तक बंद रखा और भद्दी-भद्दी जातिगत गालियां भी दीं.
बाद में दलित बच्चों के परिजनों ने पट्टामुन्डई पुलिस स्टेशन में हेडमास्टर और चार अन्य अध्यापकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. इसके बाद हेडमास्टर और चार अन्य अध्यापकों को सार्वजानिक तौर पर माफ़ी मांगनी पड़ी.
सवर्णों ने बदले में दलितों का बहिष्कार किया
माधव मलिक का कहना है कि पुलिस में शिकायत करने के बाद सवर्ण जाति के लोगों ने युद्ध घोषित कर दिया है. दलितों के सामने माफी मांगने पर उनके सम्मान को ठेस पहुंची है. अब हमें नहीं लगता कि उच्च जाति वाले खण्डायत समुदाय के साथ हम सुरक्षित हैं.
इसके बाद दलितों की इस हिम्मत से सवर्ण परिवारों ने करीब 30 गरीब दलित परिवारों को खेतों में काम करने के लिए मन कर दिया. पिछले कई दशकों से वे उच्च जाति के खेतों में कटाई का काम करते आ रहे थे. इसके अलावा उन्हें बाजार में सब्जी बेचने के लिए भी रोक दिया गया और उनसे कहा गया कि यहां से चले जाओ.
मानवाधिकार आयोग भी बेअसर
पिछले महीने दलितों ने राज्य मानवाधिकार आयोग में सामाजिक बहिष्कार को रोकने की अपील की. वहां रहने वाले दलितों का कहना है कि हमारे साथ भेदभाव  तो सामान्य है, कई सालों से ऐसा होता चला आ रहा है और हम ऐसे ही जिंदगी भी बिताते रहे हैं लेकिन इस बार स्थिति बिल्कुल अलग है.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक़, रबिन्द्र मलिका का कहना है कि मैंने उच्च जाति खण्डायत के खेतों में 20 साल से ही काम करना शुरू कर दिया था और अब मैं 60 साल का हो गया हूं. ऐसा पहली बार हुआ कि मुझे खेतों में काम करने से रोक जा रहा है. अगर मैं अब खेतों में काम करने गया तो मुझे बुरी तरह से पीटा जाएगा. उच्च जाति वाले लोग जानते हैं कि दलितों के पास कोई भी जमीन नहीं है और उनका रोजी-रोटी का साधन भी तो यही है. अब वे कैसे जियेंगे?
सरपंच ने दलितों की बताई गलती
पूर्व सरपंच उपेन्द्र का इस मसले पर कहना है कि पुलिस में जो भी शिकायत की गई वो सिर्फ एक मनगढंत कहानी है. हमारे अध्यापकों ने दलित बच्चों को कोई चोट नहीं पहुंचाई. फिजिकल एजुकेशन के टीचर ने इसलिए ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे चाहते थे कि नारियल फोड़ने से किसी बच्चे को चोट न पहुंचे. बच्चों की इस मूर्खतापूर्ण हरकत से हमारे अध्यापकों को अपमानित होना पड़ा.
हालांकि स्कूल के टीचर्स ने इन सभी आरोपों से इंकार किया है. केंद्रापारा के जिलाधिकारी देबराज सेनापति और जिला शिक्षा अधिकारी संग्राम साहू का कहना है कि हमें ऐसे जातिगत भेदभाव के बारे में कोई जानकारी नहीं है. यदि कोई शिकायत करता है तो हम जरूर कार्रवाई करेंगे.

 

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