कर्नाटक: दलित महिला ने बनाया मिडडे मील तो 100 बच्चों ने छोड़ा स्कूल

बेंगलुरु. कर्नाटक के कोलार डिस्ट्रिक के कघनाल्ली गांव में जातीय भेदभाव और छुआछूत का एक शर्मनाक मामला सामने आया है. राधम्मा नाम की दलित महिला के इलाके के सरकारी स्कूल में बच्चों के लिए मिडडे मील बनाने के लिए नियुक्ति के विरोध में लोगों ने अपने बच्चों का स्कूल से नाम कटवा लिया है. नियुक्ति के समय स्कूल में 118 बच्चे थे जिनमें से 100 ने स्कूल छोड़ दिया है और बाकी 18 बच्चों ने भी राधम्मा के हाथ का बना खाना खाने से इनकार कर दिया है.
अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक जनवरी  2014 में राधम्मा की इस स्कूल में नियुक्ति हुई थी. लेकिन पिछले 5 महीनों से राधम्मा अपनी ऑफिशियल डायरी में ‘आज भी किसी ने खाना नहीं खाया’ लिखती आ रहीं हैं. असल में बच्चों के माता-पिता नहीं चाहते कि उनके बच्चे राधम्मा के हाथ का बना खाना खाएं. राधम्मा 7 सदस्यों वाले एक परिवार से संबंध रखतीं हैं और इस नौकरी से मिलने वाली 1700 रुपए की तनख्वाह उसके लिए काफी अहम् है.
कघनाल्ली गांव की आबादी कुल 452 है और इनमें 40 प्रतिशत आदिवासी (ST) हैं. इसके आलावा दलित 18 प्रतिशत जबकि बाकि आबादी OBC की कुछ जातियों की है. मुलबागल ब्लाक के एजुकेशन ऑफिसर एन देवराज ने बताया कि उन्होंने गांव के स्कूल में मिडडे मील बंद करने का फैसला ले लिया है. उन्होंने बताया कि इलाके के IAS ऑफिसर और राजनीतिक प्रतिनिधियों के हस्तक्षेप के बावजूद गांव वालों ने बच्चों को राधम्मा के हाथ से बना मिडडे मील खिलाने से साफ़ इनकार कर दिया है.
स्कूल के प्रिंसिपल वाईवी वेंकटचालापति कहते हैं कि गांव की लोकल राजनीति के चलते यह सब हो रहा है. उन्होंने बताया कि ज्यादातर जिन बच्चों ने स्कूल छोड़ा है वे पड़ोस के गांव वाद्दहाली और नांगली के हैं. उन्होंने चिंता जताई कि अगर स्कूल में 10 से कम बच्चे हो गए तो नियम के मुताबिक इसे बंद करना पड़ेगा. प्रिंसिपल ने कहा कि जब राधम्मा ने ज्वाइन किया था स्कूल में कुल 118 बच्चे थे जिनमें से करीब 58 बच्चे मिडडे मील भी खाते थे. राधम्मा के बारे में पता चलते ही करीब 51 बच्चों ने तत्काल स्कूल छोड़ दिया. स्कूल छोड़ने वाले बच्चे सवर्ण जातियों से संबंध रखते हैं. इन्हीं के मां-बाप के दबाव बनाने के बाद बाकी लोग भी अपने बच्चों को इस स्कूल से निकालने लगे.
इसी गांव के एक दलित एम नागभूषण बताते हैं कि ये कोई नई बात नहीं है. इस गांव में हमेशा से दलितों के साथ सामजिक स्तर पर छुआछूत रहा है. उन्होंने बताया कि राधम्मा सहित कुल 4 परिवारों को पहले भी गांव में सामाजिक तौर पर प्रतिबंधित कर दिया गया था और घोषणा कर दी गई थी कि किसी ने इन घरों का पानी भी पीया तो बुरे नतीजे होंगे. बाद में मैंने शिकायत की तो 8 लोग गिरफ्तार भी हुए थे.
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