ओबीसी और दलितों के हिंसक संघर्ष के लिए बदनाम दक्षिण तमिलनाडु के स्कूलों में थेवर, नादर, यादव और दलितों के बच्चे अलग दिखने के लिए अलग-अलग रंग के बैंड कलाई पर बांधते हैं. बैंड के अलावा बच्चे जाति के हिसाब से माथे पर टीके का रंग तय करते हैं और ये भी कि उनके लॉकेट में किसका फोटो होगा.
चेन्नई. ओबीसी और दलितों के हिंसक संघर्ष के लिए बदनाम दक्षिण तमिलनाडु के स्कूलों में थेवर, नादर, यादव और दलितों के बच्चे अलग दिखने के लिए अलग-अलग रंग के बैंड कलाई पर बांधते हैं. बैंड के अलावा बच्चे जाति के हिसाब से माथे पर टीके का रंग तय करते हैं और ये भी कि उनके लॉकेट में किसका फोटो होगा.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक चेन्नई से 650 किलोमीटर दूर तिरुनेलवेली के सरकारी स्कूलों में दलित बच्चों को ताकतवर जाति समूह के बच्चों से अलग और दूर रखने के लिए कलाई में बैंड पहनाया जाता है. बैंड के कलर से ये भी तय होता है कि कौन किसका दोस्त है और किसका नहीं.
थेवर का रंग पीला-सफेद, नादर का पीला-नीला और यादव का भगवा
इस इलाके के स्कूलों में थेवर समुदाय के छात्र पीले और सफेद रंग का बैंड पहनते हैं तो नादर समुदाय के बच्चे पीले और नीले रंग का. यादवों के बच्चे भगवा बैंड पहनते हैं. ये तीनों समुदाय राज्य ताकतवर राजनीतिक और सामाजिक हिंदू समूह हैं जिन्हें सरकार ने अति पिछड़ी जाति का दर्जा भी दे रखा है.
दलित बच्चों के बैंड का रंग हरा-लाल या हरा-काला-सफेद
इन स्कूलों में दलितों का पल्लर समुदाय अपने बच्चों को हरा और लाल रंग का बैंड पहनाकर भेजता है तो अरुंधतियार दलितों के बच्चे हरे, काले और सफेद रंग का बैंड पहनते हैं.
ये बैंड आपको एक साथ कई चीजें बताते हैं. एक तो कौन किस जाति और समुदाय से है. ये भी कि कौन-किसका दोस्त है या बन सकता है. स्कूलों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है लेकिन यहां के स्कूलों में बच्चे रंग के आधार पर अपनी जाति बताने वाले पहचान धारण कर रहे हैं.
स्कूलों बच्चों में बढ़ रही बैंड का रंग देखकर गुटीय संघर्ष की वारदातें
तिरुनेलवेली के स्कूली बच्चों के बीच संघर्ष की बढ़ती वारदातों से परेशान प्रशासन ने जब इसकी जांच की तो उसे पता चला कि ऐसे संघर्ष में कलाई पर बंधे बैंड का बड़ा रोल है. ये पता चलते ही जिला प्रशासन ने सभी स्कूलों में कलाई बैंड को बैन कर दिया लेकिन उस पर अमल में मुश्किल कई और भी हैं.
प्रशासन की मुश्किल, कैसे रोकें बच्चों को बैंड पहनने से
कलाई पर जो बैंड बांधे जाते हैं वो आम तौर पर मंदिरों में मिले पवित्र धागे जैसी चीज होती है. अब ऐसे में प्रशासन या स्कूल किसी बच्चे को ये मंदिर का प्रसाद पहनने से कैसे रोके, ये बड़ी मुश्किल है.
दूसरा, इस इलाके में लोगों ने कलाई बैंड के अलावा माथे पर टीका के रंग और टीका लगाने के तौर-तरीकों को भी जाति की पहचान का हिस्सा बना रखा है. बच्चे गले में लॉकेट पहनते हैं जिसके अंदर उनके जाति समूह के किसी पूज्य या बड़े नेता का फोटो होता है.