नई दिल्ली. मुस्लिम पर्सनल लॉ के शरिया कानून में तीन बार तलाक बोलकर शादी तोड़ने और मर्दों को एक से ज्यादा निकाह की सुविधा को महिला विरोधी मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शरिया के ऐसे प्रावधानों को बदलने की जरूरत बताई है. भारतीय संविधान लिंग आधारित भेदभाव की इजाजत नहीं देता है.
महिलाओं के अधिकारों का हो रहा है हनन
जस्टिस एआर दवे और जस्टिस एके गोयल की बेंच ने चीफ़ जस्टिस एचएल दत्तू से आग्रह किया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के शरिया कानून में लैंगिक भेदभाव खत्म करने के लिए एक बड़ी बेंच बनाकर इस मसले को देखा जाए.
बेंच ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ कि वजह से महिलाओं को एकतरफ़ा तलाक झेलना पड़ रहा है और मर्द पहली पत्नी के रहते व बिना तलाक लिए ही दूसरी शादी कर ले रहे हैं जो उस महिला के सम्मान और सुरक्षा के लिए अनुचित है.
90 फीसदी मुस्लिम महिलाएं इन दो प्रावधानों के खिलाफ
भारत में शादी, तलाक और विरासत जैसे पारिवारिक मसलों पर अलग-अलग धर्म के कानून को मान्यता है लेकिन मुस्लिम शरिया कानून में महिलाओं के साथ भेदभाव पर हमेशा बहस होती रही है.
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन नाम के एक संगठन ने कुछ दिन पहले दस राज्यों की 5000 मुस्लिम महिलाओं के बीच एक सर्वे किया था जिसमें 90 फीसदी महिलाओं ने कहा था कि वो तीन बार तलाक बोलकर शादी तोड़ने और मर्दों के लिए एक से ज्यादा शादी के प्रावधान से दुखी हैं.
पर्सनल लॉ बोर्ड बोला, हमें भी पार्टी बनाया जाए
महिलाओं के साथ भेदभाव वाले शरिया के प्रावधानों की सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा का खतरा मंडराता देख ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि वो कोर्ट से अपील करेगा कि उसे इस मामले में पार्टी बनाया जाए.
बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने कहा कि हमें मुस्लिम शरिया कानूनों के साथ कोई छेड़छाड़ मंजर नहीं है और हम कोर्ट के सामने अपनी बात मजबूती से रखेंगे.