नई दिल्ली. आज बहुजन नायक और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की 83 वीं जयंती है. कांशीराम को उनके मानने वाले मान्यवर और साहेब के नाम से भी पुकारते हैं. ऐसा कहा जाता है कि एक बार कांशीराम ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा राष्ट्रपति बनाने के उनके प्रस्ताव को सामाजिक कारणों से ठुकरा दिया था. उस दौरा कांशीराम ने कहा था कि आप मुझे अगर पीएम बनवा सकते हैं तो बना दिजिए, राष्ट्रपति पद मुझे स्वीकार नहीं है.
मान्यवर कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोरापुर जिले के में एक रैदासी सिख परिवार (दलित) में हुआ था. यह एक ऐसा समाज है जिन्होंने अपना धर्म छोड़ कर सिख धर्म अपनाया था. कांशी राम के दो भाई और चार बहने थीं. कांशी राम सभी भाई-बहनों में सबसे बड़े और सबसे अधिक शिक्षित भी. उन्होंने बीएससी की पढाई की थी. 1958 में स्नातक होने के बाद कांशी राम पूना में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्त हुए.
सन 1973 में कांशी राम ने अपने सहकर्मियो के साथ मिल कर BAMCEF (बेकवार्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीस एम्प्लोई फेडरेशन) की स्थापना की जिसका पहला क्रियाशील कार्यालय सन 1976 में दिल्ली में शुरू किया गया. इस संस्था का आदर्श वाक्य था एड्यूकेट ओर्गनाइज एंड ऐजिटेट. इस संस्था ने अम्बेडकर के विचार और उनकी मान्यता को लोगों तक पहुचाने का बुनियादी कार्य किया.
साल 1980 में उन्होंने ‘अम्बेडकर मेला’ नाम से पद यात्रा शुरू की. इस यात्रा में बाबा साहेब अम्बेडकर के जीवन और उनके विचारों को चित्रों और कहानी के माध्यम से दर्शाया गया. 1984 में कांशी राम ने BAMCEF के समानांतर दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (DSSSS) की स्थापना की. हालांकि यह संस्था पंजीकृत नहीं थी लेकिन यह एक राजनैतिक संगठन था. 1984 में कांशी राम ने बहुजन समाज पार्टी के नाम से राजनैतिक दल का गठन किया.
कांशी राम एक भारतीय राजनीतिज्ञ होने के साथ समाज सुधारक भी थे. कांशी राम जी ने अछूतों और दलितों के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए जीवनभर काम किया. कांशीराम ने समाज के दबे-कुचले वर्ग के लिए एक ऐसी जमीन तैयार की जहां पर वे अपनी बात कह सकें. साथ ही अपने हक़ के लिए लड़ सके.
समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए उन्होंने कई काम किए. इनमें सबसे प्रमुख काम बहुजन समाज पार्टी की स्थापना थी. कांशी राम ने अपना पूरा जीवन शोषित समाज के पिछड़े लोगों की उन्नति और उन्हें एक मजबूत और संगठित आवाज़ देने के लिए समर्पित कर दिया. वे आजीवन अविवाहित रहे और अपना सारा जीवन पिछड़े लोगों लड़ाई और उन्हें मजबूत बनाने में समर्पित कर दिया.
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