नई दिल्ली. दालों की बढ़ती कीमतों से सरकार चौकन्नी हुई है और उसने कुछ कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. एक बड़ा कदम तो यह है कि दालों की जमाखोरी कर रहे व्यापारियों के यहां छापे मारे गए हैं. बताया जाता है कि तीन दिन की छापेमारी में लगभग 36,000 टन दालें बरामद हुई हैं. इससे खुले बाजार में दालों की कीमतें कम जरूर हुई हैं, हालांकि यह कमी नाकाफी है.
अरहर की दाल खुदरा बाजार में 210 रुपये प्रति किलोग्राम से 205 रुपये प्रति किलोग्राम तक आ गई है. जब बरामद हुई दाल बाजार में आएगी, तो कीमतें शायद तेजी से घटें. इस बीच आयातित दाल की भी एकाध खेप और आ जाएगी और इसका भी असर दालों की कीमतों पर पड़ेगा. छापेमारी का एक असर यह भी होगा कि जिन व्यापारियों ने ज्यादा मुनाफे के लालच में जमाखोरी की है, वे अतिरिक्त स्टॉक बाजार में ले आएंगे. इससे भी कीमतें कम होंगी. वैसे दालों की कीमतों को जितनी ऊंचाई तक जाना था, वहां वे पहुंच चुकी हैं और जिन्हें अतिरिक्त मुनाफा कमाना था, वे कमा चुके हैं.
ऐसा नहीं कह सकते हैं कि अब दाल की कीमतें सामान्य हो जाएंगी, क्योंकि बारिश इस बार कम हुई है, जिससे दालों का उत्पादन कम ही रहेगा. सरकार सक्रिय रही, तब भी दालों की कीमतें आसमान छूने की तरफ बढ़ेंगी ही. हरित क्रांति के 50 साल बाद वे दिन बहुत पीछे छूट चुके हैं, जब हर चीज की कमी होती थी और राशन की दुकानों पर गेहूं, चावल और चीनी के लिए लंबी लाइनें लगती थीं. तब जमाखोरों और कालाबाजारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की घोषणाओं की खबरें भी आम थीं. यहां तक कि फिल्मों में भी खलनायक अनाज के जमाखोर और कालाबाजारिए हुआ करते थे. वह जमाना बीत गया, लेकिन आज भी हर साल-दो साल पर किसी चीज की किल्लत हो जाती है, दाम आसमान छूने लगने लगते हैं और फिर जमाखोरों के खिलाफ कार्रवाई की खबरें पुराने दिनों की याद दिलाती हैं.