नई दिल्ली. केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बिल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. जेटली ने फेसबुक पर ‘द एनजेएसी जजमेंट- ऐन ऑल्टरनेटिव व्यू’ शीर्षक से लेख लिखा जिसमें उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने संसदीय लोकतंत्र को नजरअंदाज किया है. उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र गैरनिर्वाचित लोगों का निरंकुश तंत्र नहीं बन सकता. अगर चुने हुए लोगों को दरकिनार किया जाएगा तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.
एनजेएसी फैसले में न्यायपालिका की सुरक्षा के नाम पर संविधान की मूल भावना को नजरअंदाज किया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से सवाल किया है कि क्या चुनाव आयोग और नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) विश्वसनीय संस्थाएं नहीं हैं? इन सभी की नियुक्ति सरकार ही करती है. न्यायपालिका ने संवैधानिक ढांचे के अन्य बुनियादी स्तंभों की अवहेलना की है. संसद, निर्वाचित सरकार, प्रधानमंत्री, विपक्ष का नेता और कानून मंत्री ये सभी लोकतंत्र के अहम अंग हैं.
आपातकाल में जेल में रहे अरुण जेटली ने लिखा है कि जब आपतकाल लगा था तो मेरे जैसे लोगों ने विरोध किया था और जेल गए थे. उस वक़्त सुप्रीम कोर्ट चुप था. ऐसा सोचना गलत है कि सुप्रीम कोर्ट ही आपात स्थिति में बचा सकता है.
इसके अलावा उन्होंने समलैंगिकों के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने समलैंगिक संबंधों की इजाजत दे दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे गैरकानूनी ठहराया दिया। ऐसा कहना भी अनुचित ही होगा कि उनके अधिकारों की रक्षा सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है.
आपको बता दें कि जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली संविधान बेंच ने शुक्रवार को इस कानून को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए खारिज कर दिया था. बेंच का कहना था कि कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बाधित करेगा.