नई दिल्ली. लेखकों के लगातार पुरस्कार लौटाने पर सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने लेखकों की मंशा पर सवाल उठाएं हैं. उन्होंने कहा है कि ये सरकार के खिलाफ एक सोची-समझी बगावत है. ये सचमुच का विरोध है या फिर गढ़ा हुआ विरोध है.
क्या यह वैचारिक असहनशीलता का मामला नहीं है? बीजेपी नेता ने कहा कि बड़े पैमाने पर वाम विचारधारा या नेहरूवादी विचारधारा की ओर झुकाव रखने वाले लेखकों को पिछली सरकारों द्वारा मान्यता दी गई थी .
उन्होंने कहा कि उनमें से कुछ इस मान्यता के हकदार रहे होंगे. न तो मैं उनकी अकादमिक प्रतिभा पर सवाल उठा रहा हूं और न ही मैं उनके राजनीतिक पूर्वाग्रह रखने के अधिकार पर सवाल उठा रहा हूं. उनमें से कई लेखकों ने मौजूदा प्रधानमंत्री के खिलाफ उस वक्त भी आवाज बुलंद की थी जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
जब पिछले साल मोदी सत्ता में आए तो पहले की सरकारों में संरक्षण का आनंद उठा रहे लोग जाहिर तौर पर मौजूदा सरकार से असहज हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के और सिमटने के कारण उनकी यह असहजता’ पहले से बढ़ गई है .
उन्होंने कहा कि यह आरोप लगाया गया कि देश में अल्पसंख्यक समुदाय असुरक्षित महसूस कर रहा है. हमलों के ऐसे हर एक मामलों की जांच कराई गई और उनमें से ज्यादातर चोरी या बोतलें फेंक देने या खिड़कियों के शीशे तोड़ देने जैसे छोटे-मोटे अपराध के मामले पाए गए. दिल्ली और इसके आसपास के स्थानों में ऐसे किसी भी हमले को धर्म या राजनीति से जुड़ा हुआ नहीं कहा जा सका. आरोपियों की गिरफ्तारी हुई और उन पर मुकदमे चलाए जा रहे हैं. पश्चिम बंगाल में एक नन से बलात्कार के मुख्य आरोपी को बांग्लादेशी मूल का पाया गया .
इसके अलावा उन्होंने अपने एक फेसबुक पोस्ट में कहा है जो भी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं उनसे मेरे कुछ सवाल हैं कि कितने लेखकों ने इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई, कितने लेखकों ने 1984 दंगों के खिलाफ आवाज उठाई? 2004 से 2014 के बीच भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए, उसके खिलाफ किसने आवाज उठाई?
इसके अलावा उन्होंने कहा कि दादरी की घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. सही सोच रखने वाला कोई भी इंसान न तो इस घटना को सही ठहरा सकता है और न ही इसे कम करके आंक सकता है. ऐसी घटनाएं देश की छवि खराब करती हैं.