बिहार पर्व: सहरसा में पलायन को रोकेगा कौन?

कभी मछली और मयखाने के लिए सहरसा जाना जाता था लेकिन अब यह गरीबी और भुखमरी का पर्याय बन चुका है. यहां से ज्यादातर बिहार के लोग रोजगार के लिए पलायन कर चुके हैं. इंडिया न्यूज शो 'बिहार पर्व' में इंडिया न्यूज के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने जब सहरसा के लोगों से बात की तो लोगों ने बताया कि यहां फैक्टरियों की कमी, मजदूरों को मजदूरी नहीं मिलती, रेलवे कंसट्रक्शन की वजह से समस्याएं भरी पड़ी और कोसी तटबंध में पानी नहीं है.

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बिहार पर्व: सहरसा में पलायन को रोकेगा कौन?

Admin

  • October 14, 2015 5:28 pm Asia/KolkataIST, Updated 9 years ago

पटना. कभी मछली और मयखाने के लिए सहरसा जाना जाता था लेकिन अब यह गरीबी और भुखमरी का पर्याय बन चुका है. यहां से ज्यादातर बिहार के लोग रोजगार के लिए पलायन कर चुके हैं.  

इंडिया न्यूज शो ‘बिहार पर्व’ में इंडिया न्यूज के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने जब सहरसा के लोगों से बात की तो लोगों ने बताया कि यहां फैक्टरियों की कमी, मजदूरों को मजदूरी नहीं मिलती, रेलवे कंसट्रक्शन की वजह से समस्याएं भरी पड़ी और कोसी तटबंध में पानी नहीं है.

यहां से विधानसभा की चार सीटें हैं. 2010 में हुए चुनाव में यहां से दो सीटों पर जेडीयू, एक आरजेडी और एक सीट बीजेपी ने जीती थी. अगर इस जिले की जातीय समीकरण की बात की जाए तो यहां यादव सबसे ज्यादा है. इसके बाद ब्राह्मण और राजपूत, अति पिछड़ा और अति दलित भी हैं. 

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