सांप्रदायिक असहिष्णुता और साहित्यकार-एक्टिविस्टों पर हमलों के विरोध में जहां एक तरफ साहित्यकारों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा वहीं दूसरी ओर साहित्य अकादमी को ये पता ही नहीं है कि वो वापस अवार्ड का क्या करे.
नई दिल्ली. सांप्रदायिक असहिष्णुता और साहित्यकार-एक्टिविस्टों पर हमलों के विरोध में जहां एक तरफ साहित्यकारों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा वहीं दूसरी ओर साहित्य अकादमी को ये पता ही नहीं है कि वो वापस अवार्ड का क्या करे.
क्या करें और कैसे करें जैसे सवाल से जूझ रही साहित्य अकादमी ने अब तक वापस आए पुरस्कारों के भविष्य का फैसला करने के लिए 23 अक्टूबर को अकादमी की एक्जीक्युटिव काउंसिल की बैठक बुलाई है.
29 सदस्यों की इस काउंसिल में सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा अकादमी अधिकारी और 25 भारतीय भाषाओं के एक-एक प्रतिनिधि शामिल हैं. यही काउंसिल हर साल साहित्य अकादमी पुरस्कारों के नाम तय करती है. सरकारी मदद से चलने वाली यह संस्था वैसे स्वायत्त है.
पुरस्कार लौटाने के बदले दूसरे तरीकों से विरोध दर्ज कराना चाहिए- विश्वनाथ तिवारी
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी ने माना है कि अकादमी ऐसे हालात का सामना कर रही है जो आज से पहले कभी नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि हमें पता ही नहीं है कि पुरस्कार लौटाने के मसले पर क्या करें. तिवारी ने कहा कि इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने लिए अकादमी की बैठक 23 अक्टूबर को बुलाई गई है.
तिवारी ने हालांकि साहित्यकारों के पुरस्कार लौटाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह पुरस्कार तो साहित्यकारों द्वारा साहित्यकारों को दिया जाता है. उन्होंने कहा कि यह पद्मश्री या पद्म भूषण की तरह का अवार्ड नहीं है जिसे सरकार देती है. उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को अकादमी पुरस्कार लौटाने के बजाय विरोध दर्ज करने के दूसरे रास्ते अख्तियार करना चाहिए था.