NGT की मोदी सरकार को फटकार, 5000 करोड़ क्या गंगा में बह गए

नई दिल्ली. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने केंद्र सरकार से कोई एक जगह बताने को कहा जहां गंगा नदी साफ है. अधिकरण ने कहा कि भारी-भरकम राशि खर्च करने के बावजूद हालात बद से बदतर हो गए हैं. सरकार के तरीके पर निराशा प्रकट करते हुए एनजीटी ने कहा कि हम मानते हैं कि वास्तविकता में कुछ भी नहीं हुआ है. हरित प्राधिकरण ने कहा कि केंद्र और राज्य इतने सालों से केवल जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाल रहे हैं और जमीन पर कुछ ठोस नहीं हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी से गंगा को प्रदूषित कर रहीं औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था. एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि क्या आप हमें बताएंगे कि क्या यह सही है कि 5000 करोड़ रपए से ज्यादा गंगा को बद से बदतर बनाने पर खर्च हो गए. हम यह नहीं जानना चाहते कि आपने यह राशि राज्यों को दी है या खुद खर्च की है.
केंद्र को NGT की कड़ी फटकार, पूछा- एक जगह बताएं जहां गंगा साफ हो एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि क्या आप हमें बताएंगे कि क्या यह सही है कि 5000 करोड़ रपए से ज्यादा गंगा को बद से बदतर बनाने पर खर्च हो गए. पीठ ने कहा कि गंगा नदी के 2500 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में से एक जगह ऐसी बताएं जहां गंगा की स्थिति में सुधार हुआ है. जल संसाधन मंत्रालय की ओर से वकील ने एनजीटी की पीठ से कहा कि 1985 से पिछले साल तक गंगा के पुनरुद्धार पर करीब 4000 करोड़ रपए खर्च किए गए हैं.
पीठ ने कहा कि गंगा कार्य योजना (जीएपी) चरण-1 की शुरूआत 1985 में केंद्र पोषित योजना के तौर पर हुई थी और बाद में जीएसपी चरण-2 की शुरूआत नदी के जल की गुणवत्ता को सुधारने के उद्देश्य से 1993 में हुई। साल 2009 में गंगा में प्रदूषण नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (एनजीआरबीए) बनाया गया. वकील ने कहा कि विश्वबैंक से पोषित एनजीआरबीए का उद्देश्य प्रदूषण को प्रभावी तरीके से कम करना और गंगा का संरक्षण करना था और कुल परियोजना लागत का 70 फीसदी केंद्र ने दिया तथा बाकी खर्च राज्यों ने वहन किया. इस पर पीठ ने कहा कि आप जो कह रहे हैं, संभलकर कहें. हम इसे ऐसे देखते हैं कि वास्तव में लगभग कुछ हुआ ही नहीं है. हम अचानक से आपसे सारी जानकारी नहीं मांग रहे हैं.
पीठ ने कहा कि हम पिछले एक साल से इंतजार कर रहे हैं लेकिन आप किसी न किसी वजह से इस मुद्दे पर देरी कर रहे हैं. हम इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते लेकिन इस बार हम इसे आपके विवेक पर नहीं छोड़ रहे. गंगा की सफाई आपकी प्रमुख जिम्मेदारी है. आपके पास बहुत कम दिन हैं. हरित अधिकरण ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की राज्य सरकारों समेत सभी संबंधित एजेंसियों से अपने सुझाव देने को कहा. उन्होंने कहा कि हम अपने आदेश को खाली नहीं छोड़ेंगे. हम प्रत्येक राज्य की जिम्मेदारी स्पष्ट करेंगे. पीठ ने कहा कि उसने पहले चरण में गोमुख से कानपुर तक गंगा की सफाई के सिलसिले में सख्त दिशानिर्देश जारी करने की योजना बनाई है.
IANS
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