प्रवासी मजदूरों के बच्चों की परवरिश पर नेशनल कन्सल्टेशन शुरू

नई दिल्ली. गांवों में बढ़ती गरीबी और खेती-बारी की परेशानी की वजह से करीब 3 करोड़ मजदूर अपना घर-बार छोड़कर रोजी-रोटी के लिए पलायन को मजबूर हो गए. हैबिटैट सेंटर में देश भर के सोशल एक्टिविस्ट पलायन रोकने और पलायन की वजह से मजदूरों के बच्चों की परवरिश और पढ़ाई पर पड़ने वाले असर को लेकर सलाह-मशविरा कर रहे हैं.

एड-एट-एक्शन संस्था की तरफ से यूनेस्को और बर्नार्ड वैन लीर फाउंडेशन के सहयोग से चिल्ड्रेन एण्ड इंटरनल माइग्रेशन इन इंडिया विषय पर दो दिन के नेशनल कन्सल्टेशन का उद्घाटन राज्यसभा सदस्य एवी स्वामी ने किया. स्वामी ने कहा कि कानून के तहत पांच या ज्यादा प्रवासी मजदूर को काम देने वाली कंपनी और कांट्रैक्टर का रजिस्ट्रेशन जरूरी है लेकिन कंपनियां इस तरह बांटी जाती हैं कि किसी कंपनी में पांच से ज्यादा मजदूर दर्ज ही नहीं होते.

पोषण और देखभाल की गंभीर समस्या

रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट और सोशल एक्टिविस्ट हर्ष मंदर ने कहा कि पलायन का सबसे बुरा असर मजदूरों के बच्चों पर दिख रहा है जिनकी पढ़ाई और बचपन इस चक्र में बुरी तरह बर्बाद हो रहे हैं.

दिल्ली, चेन्नई, भोपाल, भुवनेश्वर, जयपुर, पटना, हैदराबाद और गुवाहाटी में नौजवान प्रवासी मजदूरों पर एक स्टडी रिपोर्ट जारी करते हुए एड-एट-एक्शन के माइग्रेशन थिमेटिक यूनिट हेड उमी डैनियल ने कहा कि ऐसे मजदूरों की बच्चियां उनके ही बच्चों की तुलना में कम पोषक भोजन पाती हैं, कम केयर पाती हैं और ऊपर से कई बार साइट के साथ-साथ घर में काम भी करती हैं. ये लड़कियां हमेशा शोषण के खतरों से घिरी रहती हैं. स्टर्डी रिपोर्ट के मुताबिक प्रवासी मजदूरों के 90 फीसदी बच्चे सरकार की समग्र बाल विकास सेवा से वंचित रह जाते हैं जबकि 80 फीसदी बच्चों का स्कूल साइट से बहुत दूर है.

सरकार को सुझाव देंगे एक्टिविस्ट

इस मौके पर एड-एट-एक्शन के साउथ एशिया रीजनल डायरेक्टर रवि प्रताप सिंह ने कहा कि पलायन बहुत गंभीर मसला बन चुका है जिस पर सरकार, एक्टिविस्ट व शिक्षाविदों को साथ आकर सार्थक कदम उठाने की जरूरत है. इस मौके पर चाइल्डहुड ऑन द मूव नाम से प्रवासी मजदूरों के बच्चों के जीवन पर एक फोटो डॉक्युमेंट भी जारी किया गया. 

28 देशों में 34 साल से काम कर रही एड-एट-एक्शन के इस कंस्ल्टेशन के बाद प्रवासी मजदूरों के बच्चों की परवरिश और शिक्षा की बेहतरी के उपायों पर एक सिफारिश सरकार को भेजी जाएगी. सिफारिश में उन राज्यों और एनजीओ को सामने रखा जाएगा जहां ऐसे बच्चों की देखभाल और शिक्षा का काम बेहतर ढंग से चल रहा है.

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