देश में आज़ादी के पहले भी आरक्षण पर राजनीतिक रस्साकशी होती रही है. पूना पैक्ट उसी राजनीतिक विवाद से निकला. संविधान में सबको बराबरी का दर्ज़ा भी इस शर्त के साथ दिया गया कि संसद और राज्य को अधिकार होगा कि वो दलितों और वंचितों के लिए आरक्षण लागू करें. 1990 के दशक से देश की राजनीति मंडल कमीशन की रिपोर्ट के इर्द-गिर्द घूम रही है.
नई दिल्ली. देश में आज़ादी के पहले भी आरक्षण पर राजनीतिक रस्साकशी होती रही है. पूना पैक्ट उसी राजनीतिक विवाद से निकला. संविधान में सबको बराबरी का दर्ज़ा भी इस शर्त के साथ दिया गया कि संसद और राज्य को अधिकार होगा कि वो दलितों और वंचितों के लिए आरक्षण लागू करें. 1990 के दशक से देश की राजनीति मंडल कमीशन की रिपोर्ट के इर्द-गिर्द घूम रही है.
अब एक बार फिर आरक्षण बड़ा सियासी मुद्दा बन गया है. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक इंटरव्यू में कहा है कि आरक्षण की समीक्षा के लिए एक कमेटी बनाई जानी चाहिए, क्योंकि आरक्षण का अब तक सिर्फ राजनीतिक इस्तेमाल भर किया गया. संघ प्रमुख के इस बयान के बाद करीब-करीब सभी पार्टियां बीजेपी पर हमलावर हैं. बीजेपी सफाई दे चुकी है कि आरक्षण जैसे चल रहा है, वैसे ही चलेगा फिर भी विरोधी इस बात को नहीं मानते हैं. अब ये बड़ी बहस का मुद्दा है कि संघ प्रमुख आरक्षण की समीक्षा क्यों चाहते हैं. क्या वाकई जातिगत आधार पर आरक्षण का सिर्फ सियासी इस्तेमाल हुआ.
देखिये बड़ी बहस में