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‘वकीलों की कमी’ के कारण निचली अदालतों में 63 लाख केस है पेंडिंग,सबसे ज़्यादा है क्रिमिनल मामले

नई दिल्ली। भारत की अदालतों में किस कदर केस का बोझ बना हुआ है इसका अंदाजा नेशनल ज्यूडिशल डाटा ग्रिड के आंकड़ों से लगाया जा सकता है।निचली अदालतों में इस समय 4 करोड़ से ज्यादा मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं।जानकारी के मुताबिक इसमें 63 लाख मामले इसलिए लंबित हैं क्योंकि वकील ही उपलब्ध नहीं है। […]

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‘वकीलों की कमी’ के कारण निचली अदालतों में 63 लाख केस है पेंडिंग,सबसे ज़्यादा है  क्रिमिनल मामले
  • January 23, 2023 10:45 am Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली। भारत की अदालतों में किस कदर केस का बोझ बना हुआ है इसका अंदाजा नेशनल ज्यूडिशल डाटा ग्रिड के आंकड़ों से लगाया जा सकता है।निचली अदालतों में इस समय 4 करोड़ से ज्यादा मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं।जानकारी के मुताबिक इसमें 63 लाख मामले इसलिए लंबित हैं क्योंकि वकील ही उपलब्ध नहीं है। इनमें कम से कम 78% मामले आपराधिक हैं और बाकी सिविल केस हैं। अगर वकील के न होने के चलते सबसे ज्यादा लंबित मामलों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश इसमें पहले नंबर पर है। 63 लाख मामलों में 49 लाख से अधिक तो दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, यूपी और बिहार में केस है।

इसलिए उपलब्ध नहीं होते हैं वकील

TOI ने एडवोकेट केवी धनंजय के हवाले से लिखा था कि वकीलों के उपलब्ध न होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे वकीलों की मौत, जब मामले खिंचते रहते हैं तो वकीलों की अक्षमता, कई बार अभियोजन वकीलों को देने में देरी की जाती है।इसके साथ ही मुफ्त कानूनी सेवाओं की देश में खराब हालत भी इसके वजह है।

देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या के लिए मुकदमों के फैसलों में देरी भी एक सबसे बड़ा कारण है। इसके भी कई कारण होते है , अदालतों में जिस मात्रा में मुकदमों की लाइन लगी हुई है, उसके लिए न्यायाधीशों की काफी ज़्यादा कमी है। इसके अलावा बार-बार मुकदमों को आगे बढ़ाना भी एक महत्वपूर्ण वजह है। कई बार जज इसलिए भी मुकदमों को आगे बढ़ाते हैं क्योंकि वकील ही मौजूद नहीं होते है , जोकि केस को लड़ सके।

वकीलों पर है केस का बोझ

बता दें , सिर्फ जजों के ऊपर ही केसेज का बोझ नहीं है।देश में वकीलों पर भी केस का बहुत बोझ होता है। अदालतों में रजिस्ट्री का सिस्टम ठीक नहीं है और मुकदमों की सूची कई बार बहुत समय के बाद आती है। ऐसे में वकील इसकी वजह से सुनवाई में नहीं पहुंच पाते है।

मुकदमों में 4 साल का है औसत समय

एक और महत्वपूर्ण वजह है कि भारत में एक औसत मामले को पूरा होने में लगभग 4 साल लग जाते है। जब मुकदमा अनुमानित समय से बहुत ज्यादा चलने लगता है तो कई बार मुवक्किल के पास फीस देने के लिए भी इतने पैसे नहीं होते है।

केंद्रीय कानून मंत्रालय के अलग-अलग आंकड़ों से पता चला है कि 2017-18 और 2021-22 के बीच, एक करोड़ से अधिक लोगों को कानूनी सेवा प्राधिकरणों के जरिए प्रदान की जाने वाली फ्री कानूनी सेवाओं का लाभ भी मिला है और जो पिछले दशकों के प्रदर्शन से काफी अलग है।

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