कौन था इंदिरा गांधी को पीएम बनाने के पीछे का मास्टरमाइंड?
जैसे ही शास्त्रीजी की ताशकंद में मौत की खबर आई, एक बार फिर से रात साढे ग्यारह बजे गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया. इस बार ना गुलजारी लाल नंदा पीएम की पोस्ट छोड़ना चाहते थे और ना ही इंदिरा गांधी.
November 7, 2017 10:34 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: जैसे ही शास्त्रीजी की ताशकंद में मौत की खबर आई, एक बार फिर से रात साढे ग्यारह बजे गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया. इस बार ना गुलजारी लाल नंदा पीएम की पोस्ट छोड़ना चाहते थे और ना ही इंदिरा गांधी. दोनों ही लोग पिछली बार इसे चूक गए थे. ऐसे में नेताओं के समर्थन की जरूरत थी, तो इंदिरा ने अगली सुबह किया किसी खास आदमी को फोन, वो आदमी जिसने इंदिरा को पीएम बनवाने में अहम भूमिका अदा की.
ये थे एमपी के सीएम द्वारका प्रसाद मिश्रा, इंदिरा के सलाहकार और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता, मिश्रा रसूखदार कांग्रेसी नेता थे, इंदिरा के बाद उनके पास गुलजारी लाल नंदा का भी फोन आया. इतना तय था कि दोनों ही पीएम बनना चाहते हैं और कोई कोरकसर छोड़ना नहीं चाहते थे. दोनों उनसे समर्थन और सलाह दोनों चाहते थे. डीपी मिश्रा ने अपनी किताब ‘पोस्ट नेहरू इरा’ में इन बातों का जिक्र किया है. उन्हीं की सलाह पर इंदिरा ने जानबूझकर पीएम पद की अपनी उम्मीदवारी में देरी की. इंदिरा को पीएम बनाने की कमान संभाली डीपी मिश्रा ने, पहले कुछ चीफ मिनिस्टर्स से मीटिंग की. उन्हें राजी किया कि पहले कामराज से पूछा जाएगा कि अगर वो पीएम बनना चाहते हैं, तो उनको हम सपोर्ट कर सकतें हैं, लेकिन अगर कामराज राजी नहीं होंगे तो इंदिरा को सपोर्ट करिए.
इधर कोलकाता के अमूल्य घोष ने कमान संभाली कामराज को पीएम बनाने की, अमूल्य उस सिंडिकेट के नेता थे, जो गैर हिंदी भाषाई कांग्रेस नेताओं का ताकतवर ग्रुप था. कामराज ने कहा दिया नो हिंदी, नो इंगलिश, हाउ. दिलचस्प बात थी कि इंदिरा के पास समर्थन मांगने गुलजारी लाल नंदा भी जा पहुंचे, लेकिन इंदिरा ने पत्ते नहीं खोले, कहा अगर सब लोग आपको सपोर्ट करेंगे तो हम भी कर देंगे. इधर मोरारजी देसाई भी मैदान में आ गए. जो शास्त्री के वक्त कामराज के समझाने पर मान गए थे. 12 चीफ मिनिस्टर्स मोरारजी को रोकने के लिए इंदिरा के साथ आ गए, केवल यूपी की सीएम सुचेता कृपलानी और गुजरात के सीएम मोरारजी की होम स्टेट होने के चलते ही उनके साथ थे. ज्यादातर नेता नहीं चाहते थे कि मोरारजी पीएम बनें क्योंकि उनको कंट्रोल करना किसी के बस में नहीं था और इंदिरा सबको गूंगी गुडिया लगती थीं. कामराज ने मोरारजी को समझाया कि मान जाएं, लेकिन इस बार वो नहीं माने और वोटिंग करना पडी, मोरारजी की हार हुई, 19 जनवरी को वोटिंग हुई. इंदिरा को 355 वोट मिले और मोरारजी को केवल 169. 24 जनवरी को इंदिरा ने पीएम पद की शपथ ली.
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