नई दिल्ली: इंदिरा गांधी और गांधीजी के रिश्तो में इंदिरा की उम्र बढ़ने के साथ ही परिपक्वता बढ़ती चली गई थी. जब गांधीजी से एक बार वो सेवाग्राम में मिलीं थीं, तब गांधीजी ने उनके यूरोपियन ढंग के कपड़ों, छोटे बालों और ज्यादा मेकअप से बचकर सादगी से जीवन जीने की सलाह दी थी, उसी तरह शादी के बाद ब्रह्मच्रर्य रखने की भी सलाह दी, जो इंदिरा को पसंद नहीं आई थीं. लेकिन गांधीजी की वो काफी इज्जत करती थीं. ऐसें में गांधीजी के दिल में भी उनके बच्ची जैसी छवि तब दूर हुई, जब इंदिरा गांधी ने दो लोगों की अलग-अलग मौकों पर जान बचाई और दोनों ही मुस्लिम थे. एक बार आजादी के बाद जब इंदिरा मसूरी से चार साल के राजीव गांधी और 8 महीने के संजय गांधी को लेकर वापस ट्रेन से लौट रही थीं तो रास्ते में एक स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी तो उन्होंने देखा कि कई लोग एक मुस्लिम व्यक्ति को मारने पर आमादा हैं, वो व्यक्ति जैसे ही भागता हुआ उनके कोच के पास आया तो इंदिरा ने उसे प्लेटफॉर्म से खींचकर अपने कोच में बैठा लिया.
दरअसल ये वो वक्त था जब पार्टीशन का ऐलान होते ही दंगे शुरू हो गए थे. एक बार एक और मुस्लिम को इंदिरा ने दिल्ली में अपनी कार में शरण देकर जान बचाई. इन दोनों घटनाओं की जानकारी जब गांधीजी को मिली तो उन्होंने इंदिरा को मिलने के लिए बुलाया और उनकी प्रशंसा की. इतना ही नहीं गांधीजी ने इंदिरा को दिल्ली में एक रिफ्यूजी कैम्प कि जिम्मेदारी भी सौंप दी और इंदिरा ने उसे बखूबी निभाया भी. गांधीजी ने उसके बाद माना भी कि उन्होंने इंदिरा की अपने मन में गलत छवि बना ली थी. इस दिन के बाद गांधीजी ने इंदिरा के साथ रोज मिलने का नियम बना लिया, उनसे कहा कि वो रोज मिलने आया करें, लेकिन जब इंदिरा नहीं आ पाती थीं, तो गांधीजी इंदिरा को एक खास तोहफा और मैसेज भेजते थे, क्या था वो तोहफा? जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो.