नई दिल्ली: इंदिरा गांधी शास्त्री जी की कैबिनेट में इनफॉरमेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्टर तो बन गईं थीं, लेकिन उनकी सोच और तेवर वैसे ही रहे जैसे पंडित नेहरू के समय में थे, उनको जो ठीक लगता था वो करती थीं, उन्हें लगता कि देश की समस्या ऐसा सुलझ सकती हैं, तो वो सुलझाने कूद जाती थीं, कैबिनेट के अप्रूवल या पीएम के दिशा निर्देशों का इंतजार नहीं करती थीं, कभी-कभी तो पीएम को पता भी नहीं होता था. साउथ में हिंदी विरोध भी ऐसा ही मुद्दा था. साउथ के लोग जबरन हिंदी थोपे जाने के सख्त खिलाफ थे, कई लोगों ने इसके खिलाफ आत्महत्या कर ली तो इंदिरा पर रहा नहीं गया और फौरन पहली फ्लाइट से बिना पीएम को सूचना दिए मद्रास के लिए उड़ गईं और भाषा आंदोलन से जुड़े लोगों को भरोसा दिलाया कि सरकार उन पर हिंदी को थोपेगी नहीं.
इंदिरा को पता था कि बिना पीएम ऑफिस की जानकारी के ऐसे चले आना या बिना सरकार से चर्चा किए कोई भी ऐलान करने के क्या रिस्क हैं, लेकिन उनका मानना था कि उनकी जिम्मेदारियां भी कुछ कम नहीं. अपनी बायोग्राफर पुपुल को उन्होंने बताया कि. ‘’मैं खुद को खाली आई एंड बी मिनिस्टर ही नहीं समझती, बल्कि देश का एक राष्ट्रीय नेता समझती हूं, क्या आपको लगता है कि मैंने रिजाइन कर दिया तो ये सरकार बच पाएगी? आपको बता रहीं हूं कि मैंने पीएम के सर के ऊपर से जम्प किया है और आगे भी करूंगी अगर जरूरत होगी तो’’. इंदिरा के इस दुस्साहस पर क्या था शास्त्रीजी का रिएक्शन? जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो विष्णु शर्मा के साथ.