पनामा पेपर्स पर क्या हुआ: नवाज़ शरीफ़ की कुर्सी गई तो अमिताभ बच्चन GST ब्रांड एंबैसडर बने

अमिताभ बच्चन किसी सार्वजनिक पद पर नहीं हैं लेकिन पनामा पेपर्स में नाम आने के बाद भी उन्हें जीएसटी का ब्रांड एंबैसडर बनाना कितना नैतिक है.

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पनामा पेपर्स पर क्या हुआ: नवाज़ शरीफ़ की कुर्सी गई तो अमिताभ बच्चन GST ब्रांड एंबैसडर बने

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  • November 6, 2017 2:32 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली. पैराडाइज पेपर्स लीक से करीब डेढ़ साल पहले पनामा पेपर्स लीक के जरिए टैक्स बचाने या चुराने की कोशिश में विदेशी कंपनियों में पैसा लगाने वाले दुनिया भर के मशहूर लोगों का नाम बाहर आया था. उस लिस्ट में भारतीय फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन और उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन का भी नाम था. टैक्स चोरों के लिए स्वर्ग समझे जाने वाले देशों में शामिल पनामा की लॉ कंपनी मोसेक फोनसेका से जुड़ी 214488 कंपनियों से जुड़े 1.15 करोड़ दस्तावेजों को खंगालने के बाद खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय संघ से जुड़े 80 देशों के 107 मीडिया संस्थानों ने पिछले साल अप्रैल में ऐसे मशहूर लोगों की जानकारी सार्वजनिक की थी जिनके ऊपर टैक्स बचाने या चुराने की नीयत से विदेशी कंपनियों में पैसा लगाने का शक था. पनामा पेपर्स लीक मामला सामने आने के बाद चले राजनीतिक बवाल और कानूनी मामले में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ और आइसलैंड के प्रधानमंत्री सिगमुंडर गुन्नलाउगस्सोन को कुर्सी छोड़नी पड़ी. लेकिन उसी लिस्ट में शामिल बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन स्वच्छ भारत से लेकर जीएसटी तक के ब्रांड एंबैसडर बने हुए हैं.
 
राजनीति में इस तरह का आरोप लगने के बाद जांच पूरी होने तक पद छोड़ने या पद से हटाने की जो नैतिक परंपरा रही है उसकी परवाह अमिताभ बच्चन के मामले में नहीं की गई. ये बात ठीक है कि अमिताभ बच्चन किसी सार्वजनिक पद पर नहीं हैं और उनके खिलाफ पनामा पेपर्स मामले में जांच चल रही है. लेकिन अगर जांच चल रही है तो उसके अच्छे नतीजे आए बिना अमिताभ बच्चन को एक के बाद एक सरकारी योजनाओं का ब्रांड एंबैसडर बनाना नैतिक कैसे ठहराया जा सकता है. अमिताभ बच्चन को इस साल जून में जीएसटी का ब्रांड एंबैसडर बनाया गया है जबकि सरकार ने पनामा पेपर्स लीक के बाद जो चार एजेंसियों की संयुक्त जांच टीम बनाई थी उसने अब तक किसी को क्लिन चिट नहीं दी है.
 
इस संयुक्त जांच टीम में आयकर विभाग, आरबीआई, वित्तीय खुफिया यूनिट और ईडी के अधिकारी शामिल हैं. आयकर विभाग ने इस जुलाई महीने में ट्वीट करके बताया था कि भारत ने पनामा पेपर्स लीक में दर्ज भारतीय नामों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए कई देशों के पत्र लिखा गया है. मार्च, 2017 तक ही 13 देशों से ऐसे पत्रों के 165 जवाब आ चुके थे जिसमें पूरी या आंशिक जानकारी भारत को दी गई थी. अमिताभ बच्चन और उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन के अलावा पनामा पेपर्स में जिन मशहूर भारतीय नागरिकों के नाम आए थे उनमें रीयल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के प्रोमोटर केपी सिंह, इंडियाबुल्स के मालिक समीर गहलोत, गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी समेत करीब 500 भारतीय नागरिकों के नाम थे.
 
जर्मन न्यूज पेपर जीटॉयचे साइटुंग के पत्रकार को पनामा पेपर्स के दस्तावेज मिले थे. सवा करोड़ दस्तावेज को खंगालने के लिए अखबार ने खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय संघ से मदद मांगी जिसके बाद 80 देशों के 107 मीडिया संस्थान इस काम में जुटे और एक साल तक दस्तावेजों को खंगालने के बाद उसके आधार पर खबरें छापनी शुरू कीं. इस लीक में कई देशों के पूर्व या मौजूदा पीएम, राष्ट्रपति, राजा या उनके रिश्तेदारों के नाम आए. ऐसे नेताओं में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ भी शामिल थे जिनके बच्चों का नाम पनामा पेपर्स में आया. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केस चला और सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को पीएम पद के अयोग्य घोषित कर दिया जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. अभी पिछले महीने ही नवाज के दामाद और मरियम नवाज़ शरीफ़ के पति मोहम्मद सफदर को गिरफ्तार कर लिया गया. पनामा पेपर्स में नाम आने पर आइसलैंड के प्रधानमंत्री सिगमुंडर गुन्नलाउगस्सोन को भी इस्तीफा देना पड़ा था.
 
पनामा पेपर्स या पैराडाइज पेपर्स में किसी का नाम आने का क्या मतलब है ?
 
आरबीआई के नियमों के मुताबिक 2013 से पहले कोई भारतीय नागरिक विदेश में कंपनी शुरू नहीं कर सकता था. 2004 में पहली बार आरबीआई ने 25 हजार डॉलर सालाना विदेश में निवेश या खर्च करने की छूट दी. ये रकम आज ढाई लाख सालाना है जिसका सीधा मतलब ये है कि कोई भारतीय एक साल में ज्यादा से ज्यादा ढ़ाई लाख डॉलर विदेशी कंपनियों के शेयर खरीदने में या ज्वाइंट वेंचर लगाने में या किसी को गिफ्ट करने में इस्तेमाल कर सकता है. 2004 में जब आरबीआई ने 25 हजार डॉलर सालाना विदेशी निवेश का विकल्प दिया तो कुछ लोगों ने इसे विदेश में कंपनी खड़ी करने का सिग्नल समझ लिया जिसको लेकर आरबीआई ने सितंबर, 2010 में सफाई दी और स्पष्ट किया कि इसका मतलब ये नहीं है कि भारतीय नागरिक विदेश में कंपनी शुरू कर सकते हैं. अगस्त, 2013 में भारत ने सहायक कंपनियां शुरू करने या ज्वाइंट वेंचर में निवेश करने का नियम बनाया. 
 
पनामा पेपर्स लीक या पैराडाइज पेपर्स लीक को इस नजरिए से देखने पर समझ में आएगा कि जिन लोगों के नाम आ रहे हैं उनलोगों ने उस वक्त विदेश में कंपनियां बनाईं या विदेशी कंपनियों में निवेश किया जिस समय भारत का कानून इसकी इजाजत नहीं देता था. कई भारतीय नागरिकों ने विदेश में कंपनी शुरू नहीं करने का तकनीकी तोड़ ये निकाला कि विदेशी कंपनी को खरीदना और विदेशी कंपनी शुरू करना दो अलग चीज हैं और उनलोगों ने विदेशी कंपनियों को खरीद लिया. कुछ लोगों ने सालाना कोटा से ज्यादा पैसा विदेश में निवेश किया. कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने विदेश में हुई कमाई को भारत में दिखाया ही नहीं और उसे विदेशी कंपनी में ही जमा करा दिया. कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने विदेश में कंपनी या खाते खोले ताकि सरकारी ठेकों की दलाली या क्राइम से मिले पैसे को वहां जमा कर सकें.
 
टैक्स चोरों के लिए स्वर्ग समझे जाने वाले देशों में कंपनी शुरू करने की सबसे बड़ी दो वजह ये है कि एक तो कंपनी का असली मालिक कौन है इसकी जानकारी गोपनीय रहती है और दूसरी कि उस कंपनी की कमाई पर टैक्स नहीं लगता है. फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट यानी फेमा, मनी लाउंड्रिंग एक्ट, ब्लैक मनी एक्ट, भ्रष्टाचार निरोधक कानून, आयकर कानून जैसे तमाम कानून हैं जो इस तरह के अघोषित विदेशी निवेश या विदेशी संपत्ति वालों पर लागू होते हैं. पनामा पेपर्स लीक हों या पैराडाइज पेपर्स लीक, जिन भारतीय नागरिकों के नाम इसके जरिए बाहर आए हैं उनके खिलाफ जो जांच हो रही है या होगी, वो सारी जांच इन्हीं कानूनों के उल्लंघन के नजरिए से होगी. जांच में यही देखा जाएगा कि जिस तारीख को विदेश में कंपनी बनाई गई या विदेशी कंपनी में पैसा लगाया गया, उस तारीख को देश का कानून क्या कहता था. अगर वो उस समय गैर-कानूनी था तो सरकार देखेगी कि जुर्माना लगाया जाए या कंपनी बंद कराई जाए या जेल भेजा जाए.
 
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