नई दिल्ली. इंदिरा गांधी ने जब अपने पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू को फीरोज से अपनी शादी का फैसला सुनाया तो उनके लिए बड़ा शौकिंग था. उनको लगता था कि बेटी को बहुत बड़ा काम करना है. शादी के बाद तो ये फंस जाएगी. वैसे भी फिरोज ने मां-बेटी का दिल भले ही जीत लिया हो, लेकिन नेहरू के करीब वो कभी भी नहीं पहुंच पाए. लेकिन नेहरू ने इसे जगजाहिर नहीं किया और कहा तुम एक बार गांधीजी से मिलकर आओ.
उससे पहले नेहरू ने इंदिरा की नानी यानी कमला की मां के जरिए भी एक कोशिश की इंदिरा को समझाने की. मसूरी में इंदिरा की नानी राजेश्वरी कौल इंदिरा से मिलने पहुंचीं. इंदिरा से बोलीं, तुम्हें एक शानदार लग्जरी लाइफ जीने की आदत है. एक इशारे पर तुम्हारी सारी ख्वाहिशें पूरी हो जाती हैं, तुम फिरोज के साथ कैसे रह सकती हो? तब इंदिरा ने जवाब दिया कि अपनी मां की तरह मैं भी सादगी भरी जिंदगी जी सकती हूं. यहां तक कि एक किसान की झोंपड़ी में भी जीवन गुजार सकती हूं. तब इंदिरा की नानी राजेशवरी कौल ने इंदिरा से कहा, बेटी कितनी अच्छी बात है कि तुम उस युग मे जी रही हो, जिसमें तुम जो चाहो या तुम्हारी जो इच्छा हो वो पूरी कर सकती हो.
इधर जब इंदिरा की बुआ विजय लक्ष्मी पंडित को इंदिरा की शादी की जिद के बारे में पता चला ने इंदिरा को कहा—‘’अगर तुम उसे प्यार करती हो तो उसके साथ रह सकती हो, शादी करने की क्या जरूरत?’’ तो इंदिरा ने जवाब दिया कि ‘’मुझे उसका साथ और बच्चे दोनों चाहिए’’. गांधी जी ने भी दोनों को समझाया और बाद में ब्रह्मचर्य का पालन करने की सलाह दी, लेकिन इंदिरा ने ठुकरा दिया. फिर नेहरू ने बेटी की जिद पर इंदिरा की शादी तय कर दी. दिन तय हुआ 16 मार्च 1942 का, नवमी का दिन था. राजनीतिक कार्य़क्रम कुछ ऐसा तय किया गया कि शादी के कुछ दिनों पहले से ही नेहरू और गांधीजी दोनों इलाहाबाद में ही रहें.
ऐसे में इंदिरा ने शादी के दिन केवल तीन गहने और एक खास साड़ी पहनी, कौन से थे वो तीन गहने और क्या था उस साड़ी में ऐसा खास, जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो विष्णु शर्मा के साथ.
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