इंदिरा गांधी की मां ने किसको लिखा कि मैं तो दुनिया पर बोझ हूं, इतने साल में तो भगवान भी मिल जाते ?

नई दिल्ली: इंदिरा गांधी का अपनी मां कमला नेहरू से गहरा लगाव था, पिता जवाहर लाल अक्सर घर से बाहर रहते थे, या तो कांग्रेस की मीटिंग या आंदोलनों के चलते देश के किसी कौने में या फिर जेल में. इंदिरा के बाद पैदा हुआ कमला का बेटा जब मर गया तो कमला और भी ज्यादा निराश हो गई. इंदिरा पुणे में पढ़ने गईं तो जल्द उन्हें मां की बीमारी के चलते वापस आना पड़ा. फिर उन्हें शांति निकेतन भेजा गया. इधर नेहरू की बहनों और मां का कमला के प्रति रुख अच्छा नहीं था. ऐसे में कमला आध्यात्म और धर्म में रमने लगीं.
एक बार तो मां से मिलकर लौटते वक्त इंदिरा ने अपने पिता को बर्दवान स्टेशन से एक लैटर पोस्ट कर दिया कि इतने लोग घर में हैं, लेकिन ना तो कोई मां का ख्याल रखता है और ना ही उनसे बातें करता है. कमला जीवन से इतनी निराश थीं कि उनका झुकाव आध्यात्म की तरफ हो गया. अपनी मां के साथ रामकृष्ण मिशन के  स्वामी शिवानंद से मिलीं और बिना नेहरू को बताए दीक्षा ले ली. इतना ही नहीं वो देहरादून में मां आनंदमयी से भी मिलीं, बाद में पीएम बनने के बाद इंदिरा भी उनसे लगातार मिलती रहीं. कमला अक्सर अपनी एक दोस्त को पत्र में लिखा करती थीं, ”क्यों तुम क्यों मेरे लिए उदास हो ? मैं तो इस दुनियां पर बोझ हूं”. एक पत्र में तो कमला ने लिखा कि ”इतने साल मैंने ग्रहस्थ आश्रम में बिताए, इतना समय मैं भगवान की खोज में बिताती, तो मुझे वो मिल जाते.”
जब कमला की टीबी की बीमारी के बारे में पता चला तो नेहरू ने इलाज के लिए स्विटजरलैंड ले जाने का इरादा किया. तब मोतीलाल ने नेहरू को सलाह दी कि तुम राजनीतिक लाइन में रहकर कुछ जॉब नहीं कर सकते हो. मोतीलाल ने उनको एक अमीर आदमी का केस दिला दिया, उससे दस हजार रुपए की फीस मिली, जिससे नेहरू ने स्विटरजरलैंड का खर्च निकाला. 85 साल की इंदिरा का भी वहीं एडमीशन करवा दिया, वहीं इंदिरा नेहरू के साथ आइंस्टीन से भी मिलीं. कमला एक बार फिर गंभीर बीमार हुईं, नेहरू जा नहीं पाए तो इंदिरा के साथ कमला और एक फैमिली ड़ॉक्टर के साथ भेजा गया, जहां वियना में उनका स्वागत और सारे इंतजाम सुभाष चंद्र बोस और उनके साथियों ने करवाए. इंदिरा का एडमीशन ज्यूरिख में करवाया गया. फिर कमला को लुसाने ले जाया गया, नेहरू भी वहां पहुंच गए. जिस दिन नेहरू को वापस जाना था, उसी दिन कमला गुजर गईं. बोस और इंदिरा भी वहीं थे. मोतीलाल नेहरू की मौत के बाद कमला ने अपनी ज्वैलरी जमा करके इंदिरा के लिए एक ट्रस्ट बना दिया था, एक दिन बिस्तर में ही नेहरू को कमला ने कहा भी कि उस पैसे का किसी चैरिटी के लिए इस्तेमाल करना.
अंतिम दिनों में कमला ज्यादा ही आध्यात्मिक हो गई थीं, स्वामी अभयानंद को लिखे खत में उन्होंने एक बार लिखा था कि कभी कभी मुझे लगता है कि मेरे अंदर कृष्ण आ गए हैं, कभी कभी तो लगता है मैं ही कृष्ण हूं. लेकिन इन आखिरी दिनों में जहां कमला एडमिट थीं, वो इलाका घने जंगल में था. इंदिरा अपनी मां के पास रातों में रुकती थीं, तो जाड़ों भरी रातों में तेज हवाएं चलती थीं, उन रातों का खौफ इंदिरा के अंदर जिंदगी भर रहा. पीएम बनने के बाद भी इंदिरा जहां रुकती थीं और मौसम खराब होने के साथ तेज हवाएं चलती थीं, बिजली कड़कती थी, तो इंदिरा सारे दरवाजे खिड़कियां, परदे बंद करने का आदेश देती थीं. अगर आप जानना चाहते हैं कि कमला नेहरू अपनी किस दोस्त को खत लिखा करती हैं, और उसी दोस्त के पति ने उनकी बेटी इंदिरा की सरकार कैसे गिराई, जानने के लिए देखिए ये वीडियो
Aanchal Pandey

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