नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले या घायलों के परिजनों को मुआवजे की नई गाइडलाइन जारी की. कोर्ट ने कहा कि सड़क दुर्घटनाओं में मृतकों और घायलों के परिजनों को मुआवजा देते समय उनकी आमदनी के साथ-साथ भविष्य की संभावनाओं पर भी विचार किया जाए. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि वैसे तो मौत का विकल्प पैसा नहीं हो सकता लेकिन मुआवजे में एक समानता तो होनी ही चाहिए. बेंच ने कहा है कि इन दोनों के बीच संतुलन होना जरूरी है. सड़क दुर्घटना पीड़ितों को मिलने वाले मुआवजे में एक समानता होनी ही चाहिए.
संविधान पीठ ने कहा है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत पीड़ित परिवारों को दी जाने वाली मुआवजे की राशि तय करने से पहले यह ध्यान रखना जरूरी है कि वह तार्किक और समानता के सिद्धांत के अनुरूप हो. पीठ ने कहा है कि दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति की आयु 40 साल से कम हो तो मृतक के वेतन का 50 फीसदी उसके परिवार को भविष्य की कमाई की संभावनाओं के तौर पर मिलना चाहिए. वहीं 40 से 50 वर्ष के बीच के मृतकों के लिए यह 30 फीसदी जबकि 50 से 60 वर्ष के बीच की आयु के मृतक के लिए यह 15 फीसदी होनी चाहिए.
संविधान पीठ ने कहा है कि अगर मृतक का खुद का कारोबार हो या जिसकी निर्धारित आमदनी (टैक्स को छोड़कर) हो और उसकी उम्र 40 वर्ष से कम हो, तो उस वक्त जो वह कमा रहा था कि उसका 40 फीसदी अतिरिक्त मुआवजा मिलेगा. वहीं 40 से 50 वर्ष के बीच वाले लोगों के लिए यह 25 फीसदी और 50 से 60 वर्ष के बीच वाले मृतकों के लिए यह 10 फीसदी होगा. संविधान पीठ ने यह फैसला यह देखते हुए दिया है कि पुराने कई आदेशों में सड़क दुर्घटना पीड़ितों को मिलने वाले मुआवजों की रकम में फर्क देखने को मिला है.
साथ ही पीठ ने संपदा के नुकसान पर 15 हजार रुपये, कंपनी के नुकसान के मद में 40 हजार रुपये और अंतिम संस्कार के लिए 15 हजार रुपये देने के लिए कहा है. हर तीन साल इन राशियों में 10 फीसदी का इजाफा होगा. पीठ ने कहा कि अदालत और ट्रिब्यूनल को मुआवजे की रकम तय करते वक्त व्यावहारिक रवैया अपनाना चाहिए, जो वास्तविकता के करीब हो.