नई दिल्ली: ये भी हैरतअंगेज था कि जिस हॉस्पिटल के डॉक्टर इंदिरा गांधी का इंतजार कर रहे थे, वहां पहुंच गए उनके हत्यारे बेअंत सिंह और सतवंत सिंह. ये सही घटना है, जिसे सालों बाद उस हॉस्पिटल्स के डॉक्टर्स ने मीडिया के साथ शेयर किया, जिसमें ये वाकया हुआ था. सोचिए इंदिरा गांधी के हत्यारों को देखकर उन डॉक्टर्स पर क्या गुजरी होगी. वो भी तब जब उनको पता चल चुका था कि इंदिरा गांधी की एक घंटे पहले हत्या हो चुकी है.
जैसे ही इंदिरा गोलियां खाकर नीचे गिरीं, गोलियों की आवाज सुनकर सोनिया अंदर से भागती हुई आईं, इंदिरा के थोड़ा पीछे चल रहे आर के धवन शॉक में थे. पीएम आवास के डॉक्टर आर ओपेह भी जल्दी पहुंचे, पीएम आवास पर तैनात एम्बुलेंस के डॉक्टर को ढूंढा गया लेकिन नहीं मिला तो एक दूसरी ऑफीशियल सफेद अम्बेसडर कार से इंदिरा को लेकर एम्स पहुंचे, सोनिया की गोद मे खून से लथपथ इंदिरा का सर था. इधर इंदिरा को बचाने की कोशिशें चल रहीं थी, उधर 11 बजकर 25 मिनट पर तुगलक रोड थाने में नारायण सिंह के बयान के आधार पर केस दर्ज हो गया. इधर इंदिरा की हत्या के बाद जब सतवंत और बेअंत ने हथियार डाल दिए, तो उन दोनों को जब आईटीबीपी के जवानों ने गोलियों से भून दिया. उसके बाद तो राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल ले जाया गया.
इधर राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल केस डॉक्टर्स को ऊपर से फोन आया कि इंदिरा गांधी को गोली लगी है, उन्हें वहां लाया जा रहा है. फौरन कुछ सीनियर डॉक्टर्स को गेट के बाहर ही उन्हें रिसीव करने के लिए पहुंचने के लिए कहा गया लेकिन जब इंदिरा की जगह उनके हत्यारों को लाया गया तो डॉक्टर्स काफी चौंके. वैन से उतरते ही स्ट्रेचर पर लेटा सतवंत पंजाबी में जोर से चिल्लाया, ‘शेरा वालां काम कर दित्ता, मैं उना नूं मार दित्ता’. डॉक्टर्स हैरान थे और गुस्सा भी लेकिन डयूटी तो करनी ही थी, सतवंत के पेट से डॉक्टर्स ने ऑपरेशन करके दो गोलियां बाहर निकालीं.
इधर एम्स में इंदिरा को बचाना काफी मुश्किल लग रहा था, 1 बजे बीबीसी ने खबर प्रसारित कर दी, राजीव को बीबीसी के जरिए वो खबर मिली. हालांकि कुछ लोग कहते हैं राजीव को पहले से भी सूचना दे दी गई थी. राजीव कोलकाता के पास थे. उन्हें एयरफोर्स के विशेष विमान बोइंग 737 से दिल्ली लाया गया. डॉक्टर सफया ने करीब 2 बजकर 23 मिनट पर इंदिरा गांधी को मृत घोषित कर दिया. ऐसे में जितना दुख था, उससे ज्यादा चिंता थी कि देश का लीडर कौन होगा? काफी मुश्किल काम था पहले राजीव के नाम पर सबको राजी करना, फिर राजीव को उसी शाम को शपथ के लिए मनाना, जबकि मां की लाश भी घर नहीं आई थी और तीसरा और सबसे मुश्किल काम कांग्रेस के नेताओं को लगा कि क्या राष्ट्रपति जेल सिंह राजीव के नाम पर सहमत होंगे, जबकि ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर वो नाराज थे. एयरपोर्ट पर जेल सिंह को रिसीव करने के लिए अरुण नेहरू को भेजा गया और शाम को राजीव गांधी ने भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली.