नई दिल्ली: 31 अक्टूबर के दिन इंदिरा गांधी सुबह उठीं, हमेशा की तरह अपने योग आसन किए. उसके बाद ब्रेकफास्ट किया, फिर करीब एक घंटे तक वो ऑफीशियल पेपर्स देखती रहीं. फिर राहुल गांधी अपनी दादी से मिलने आए, ये रोज की बात थी. इंदिरा गांधी के घर के अंदर से निकलने से पहले रोज सुबह राहुल आकर उनसे थोड़ी देर बातें करते थे, इंदिरा उनसे स्कूल और पढ़ाई आदि के बारे में पूछती थीं. तब तक साढ़े आठ बज चुके थे, उनके असिस्टेंट आरके धवन ने उन्हें खबर की ब्रिटिश रसियन एक्टर टीवी प्रजेंटर पीटर उस्तीनोव की डॉक्यूमेंट्री के लिए इंटरव्यू का समय बदलकर 9 बजे कर दिया गया था, वो बगल में ही 1, अकबर रोड में पीएम के ऑफीशियल कार्यालय में प्रिंसिपल ऑफीशियल एडवाइजर एच वाई शारदा प्रसाद के साथ इंतजार कर रहे हैं.
ये भी दिलचस्प बात थी कि इंदिरा गांधी ने उस दिन सिल्क की केसरिया साडी को पहनने के लिए चुना, केसरिया रंग शहीदों का चोला माना जाता है. एक लेडी मेकअप आर्टिस्ट ने उनका मेकअप किया, क्योंकि टीवी इंटरव्यू होना था. केसरिया साड़ी, ब्लैक सेंडल और लाल कलर का एक छोटा कपड़े का हैंडबैग लिए इंदिरा का गेट की तरफ बढ़ीं, उनके मेकअप को धूप से बचाने के लिए उनके साथ सेवक कांस्टेबल नारायण सिंह भी साथ चला, तभी इंदिरा ने एक दूसरे सेवक को पीटर के लिए एक टी-सैट ले जाते देखा, तो इंदिरा ने उसे कहा कि बदलकर कोई फैंसी सा टी-सैट लाओ. उसके बाद वो गेट की तरफ बढ़ी, जो मुश्किल से बीस मीटर का रास्था था, वहां तक पहुंचने में बमुश्किल एक मिनट लगा, करीब सवा नौ बज चुके थे.
उस गेट पर सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह ने इंदिरा को सैल्यूट किया, इंदिरा ने हाथ जोड़कर मुस्कराकर उसको जवाब दिया. बेअंत सिंह 9 साल से इंदिरा की सिक्योरिटी में था, कई देशों की यात्रा इदिंरा के साथ कर चुका था. सैल्यूट के लिए उठा बेअंत का हाथ पीछे की तरफ गया तो हाथ में पिस्तौल थी, तीन गोलियां उसने बिना रुके इंदिरा के सीने में उतार दीं. तभी गेट के बाहर से 22 साल का युवा सतवंत सिंह, जो पांच महीने पहले ही इंदिरा की सिक्योरिटी में आया था, अंदर आया और अपनी स्टेनगन से करीब 30 गोलिया इंदिरा पर चला दीं. उसके बाद बेअंत ने अपना वाकी टॉकी फेंसिंग पर टांगा, आईटीबीपी के जवान इंदिरा की सिक्योरिटी में आउटर घेरे में तैनात थे, वो भाग कर आए तो बेअंत और सतवंत ने अपने हथियार नीचे रख दिए. बेअंत सिंह ने कहा, ‘’मैंने अपनी ड्यूटी पूरी कर दी, अब आपकी बारी है.‘’
तरसेम सिंह और रामशरण सिंह आईटीबीपी में थे, अपने साथियों के साथ वो फौरन दोनों को सिक्योरिटी वाली हट में पकड़ कर ले गए, सभी काफी गुस्से में थे, बेअंत ने कुछ कहने की कोशिश तो जवानों ने बेअंत के सीने में वही गोलिया उतार दीं, सतवंत भी बुरी तरह घायल हो गया. बाद में सप्लाई और डिस्पोजल विभाग के केहर सिंह की भी साजिश में शामिल होने पर गिरफ्तारी हुई और दोनों को 1989 में फांसी पर चढ़ा दिया गया.