नई दिल्ली. आपराधिक मामलों में सजायाफ्ता होने पर आजीवन चुनाव लडऩे की पाबंदी लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कितने आपराधिक मामले लंबित है. क्या याचिकाकर्ता के पास कोई डाटा है अगर है तो आज कोर्ट को वो डाटा दें. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि आप सजा होने के बाद 6 साल की रोक पर बहस कर रहे हो. लेकिन जब कोर्ट में केस 20-20 साल लंबित रहते है और इसी बीच आरोप चार साल का कार्यकाल पूरा कर लेते है तो उसके बाद अगर उन्हें 6 साल के लिए या आजीवन चुनाव लड़ने से मना भी कर दिया जाए तो इसका क्या मतलब है?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले का जिक्र करते हुए कहा कि कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि आपराधिक मामलों में जनप्रतिनिधियों के ख़िलाफ़ मामले की सुनवाई तेजी से हो और एक साल के सुनवाई पूरी करने के आदेश दिए थे. कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा था कि ऐसे मामलों में कोर्ट 6 महीने से ज्यादा की रोक नही लगा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों में सजायाफ्ता होने पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध की मांग इस लिए कर रहे है. क्योंकि ऐसे लोगों के खिलाफ मुक़दमे की सुनवाई पूरी नही हो पा रही है.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने ये बात तब कही जब याचिकाकर्ता की तरफ से ये कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में दागी नेताओं के खिलाफ लंबित मामलों की जल्द सुनवाई के आदेश तो दिए थे लेकिन फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का आदेश नही दिया था. याचिकाकर्ता की तरफ से बहस कर रहे वकील कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि दागी नेताओं की वजह से चुनाव की पवित्रता से समझौता हो रहा है. कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि राजनीतिके पार्टी दो वजहों से आपराधिक छवि वाले नेताओं को पसंद करती है. पहली उनके पास पैसे होते है और दूसरी वो मतदाताओं को प्रभावित कर सकते है.
दरअसल भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर रहा है. अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में मांग की है कि नेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ चल रहे मुकदमों की सुनवाई एक साल में पूरा करने के लिये स्पेशल फास्ट कोर्ट बनाया जाये. याचिका में ये भी कहा गया है कि सजायाफ्ता व्यक्ति के चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाये.