नई दिल्ली: सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात में हुआ था. वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. भारत की आजादी के बाद वे पहले गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने. बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की. आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है.
देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया, लेकिन ग्वालियर के लिए ये देखने को भी नहीं मिली थी. उस समय के ग्वालियर महाराज जीवाजीराव सिंधिया थे. उनके मन में आजादी को लेकर कुछ और बात थी. वह भारत में ग्वालियर के विलय को संवैधानिक स्थिति का हवाला देकर टालना चाहते थे. वह ग्वालियर को भारत में विलय को लेकर कुछ ज्यादा सुविधाएं चाहते थे. विलय को लेकर महाराज सिंधिया और तात्कालीन नेहरु सरकार के बीच काफी मतभेद गहरा गए थे. सिंधिया का मानना था कि जब तक देश का संविधान नहीं आ जाता और रियासतों का स्वरूप साफ नहीं होता तब तक रियासत में सिंधिया राजवंश के स्थापित प्रशासन ही सर्वापरी रहेगा. इस बात की जानकारी सरदार पटेल को लगी तो उन्होंने सिंधिया को एक कड़ा संदेश भेजा. उन्होंने ग्वालियर को तुरंत भारत में विलय पर हस्ताक्षप करने के लिए कहा. उनके इस कड़े रवैये को देखते हुए जीवाजीराव सिंधिया ने तुरंत विलय पत्रक पर हस्ताक्षर कर दिए. इस पूरी प्रक्रिया में 10 दिन निकल गए और फिर 25 अगस्त को ग्वालियर में आजादी का जश्न मनाया गया.
सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना था. सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था. पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा. इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ और हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा था. जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया. जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया. किन्तु नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है. महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे.
31 अक्टूबर को ‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती है. सरदार पटेल की जयंती पूरे देश में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाई जाएगी. 31 अक्टूबर को देश में अलग-अलग जगहों पर ‘रन फॉर यूनिटी’ का भी आयोजन किया गया है. ‘रन फॉर यूनिटी’ आयोजन का मकसद देश के कोने-कोने में राष्ट्रीय एकता का संदेश फैलाना है.