नई दिल्ली. 24 अक्टूबर की रात देश ने ठुमरी गायिक गिरिजा देवी को खो दिया. गिरिजा देवी एक ऐसी शख्सियत है जिनको देश शायद ही कभी भूला पाएगा. ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी किसी परिचय की मोहताज नहीं है. गिरिजा देवी को अप्पा जी कह कर संबोधित किया जाता रहा है. लेकिन आज अप्पा जी सेनिया बनारस घराने को अकेला कर चली. अप्पा जी ठेठ बनारसी अंदाजा में कजरी, ठुमरी, दादरा, होली और चैती गाया करती थी. गिरिजा देवी ने कभी भी इन विधाओं को मरने नहीं दिया, लेकिन वो खुद को ही न बचा पाई. गिरिजा देवी के निधन से पूरे देश में शोक को लहर देखी जा सकती है.
हमेशा सफेद रंग की साड़ी पहने और उसी रंग के बाल उनकी पहचान बन चुका था. बताया जाता है कि पहले वो लड़का सी बनी फिरती थी, हमेशा पेंट शर्ट पहनना. लड़को जैसे बाल रखना. लेकिन गायिकी का ऐसा चस्का पड़ा कि रहन सहन भी वैसा ही ढाल लिया. 1929 में जन्मी बनारस गायिक सिर्फ ठुमरी ही नहीं गाती थी उन्होंने इसके अलावा भी कई शैलियों में गायिकी की है. लेकिन ठुमरी ने गिरिजा देवी को अलग पहचान दिलाई. बताया जाता है कि शास्त्रीय गायिका का व्यवहार बेहद सहज और कोमल था. हमेशा अपने शिष्यों को अपने हाथ से खाना परोसती थी.
बता दें गिरिजा जी को 1972 में पद्मश्री, 1989 में पद्म भूषण और 2016 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. पद्मविभूषण गिरिजा देवी का कोलकाता के बिरला अस्पताल में मंगलवार को रात करीब साढ़े नौ बजे निधन हो गया. सुबह तबीयत बिगड़ने के बाद उनकी नाती ने उन्हें अस्पताल एडमिट करवाया. लेकिन करीब 9.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. गिरिजा देवी के चले जाने से शास्त्रीय संगीत के साथ कला जगत में शोक की लहर देखी जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है.