फिर चलेगी बोफोर्स केस की बंदूक, सीबीआई को सरकार की इजाजत का इंतजार
बोफोर्स का भूत एक बार फिर बाहर निकलने के लिए बेकरार है, राजीव गांधी सरकार को हिला देने वाला ये स्कैम कभी भी अंजाम तक नहीं पहुंचा. एक बार फिर सीबीआई ने बारह साल पुरानी स्पेशल पिटीशन लीव की याद सरकार को दिलाई है, जिसकी इजाजत 2005 में यूपीए सरकार ने नहीं दी थी.
October 21, 2017 9:45 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: बोफोर्स का भूत एक बार फिर बाहर निकलने के लिए बेकरार है, राजीव गांधी सरकार को हिला देने वाला ये स्कैम कभी भी अंजाम तक नहीं पहुंचा. एक बार फिर सीबीआई ने बारह साल पुरानी स्पेशल पिटीशन लीव की याद सरकार को दिलाई है, जिसकी इजाजत 2005 में यूपीए सरकार ने नहीं दी थी. इससे राजनीतिक सरगर्मियां अचानक से तेज हो गई हैं, जीएसटी और नोटबंदी मामले पर बैकफुट पर चल रहे बीजेपी नेता एकदम से आक्रामक मूड में आ गए हैं.
बोफोर्स स्कैंडल राजीव गांधी की सरकार के दौरान खबरों में आया जब बोफोर्स एबी नाम की स्वीडिश कंपनी को 410 फील्ड हॉवित्जर तोपों का ऑर्डर भारत सरकार से मिला और फिर खबर आई कि इस सौदे को पाने के लिए उस दौर के करीब 64 करोड़ रुपयों की रकम दलाली में दी गई. राजीव गांधी से लेकर हिंदुजा भाईयों और इटली के हथियार व्यापारी क्वात्रोच्चि तक का नाम आया, जोकि गांधी परिवार का करीबी था, कई स्वीडिश अधिकारियों के भी नाम आए. दिल्ली हाईकोर्ट के जज डीके कपूर ने 2004 में बोफोर्स कंपनी के विरुद्ध धोखाधड़ी के तहत धारा 365 के तहत क्रिमिनल चार्जेज लगाने के आदेश दिए, बोफोर्स को 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट के ही जज आरएस सोढ़ी ने क्लीन चिट दे दी, साथ में तीनों हिंदुजा भाइयों को भी बरी कर दिया.
2005 में ही सीबीआई ने इस फैसले के विरुदध् स्पेशल लीव पिटीशन लगाकर सरकार से अनुमति मांगी लेकिन सरकार ने इजाजत नहीं दी. 2005 में ही इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट के वकील अजय अग्रवाल की याचिका लम्बित है. नई सरकार आने के बाद हाल ही में कुछ नए खुलासे हुए हैं. एक तो हाल ही में भारत आए निजी इन्वेस्टीगेशन एजेंसी फेयरफैक्स के प्रेसीडेंट मिशेल हर्शमैन का इंटरव्यू एक चैनल ने प्रसारित किया कि बोफोर्स मामले में तमाम गड़बड़ियां हुई हैं, उन्होंने कई तथ्य अपनी बात के समर्थन में रखे. इतना नहीं हर्शमैन ने दावा किया कि जब उन्होंने राजीव गांधी को स्विस बैंक में बैंक एकाउंट ‘मोंट ब्लैंक’ के बारे में बताया तो उनकी हवाइयां उड़ गई थीं, वो नाराज हो गए थे.
हाल ही में बोफोर्स जांच में स्वीडन के चीफ इन्वेस्टीगेटिंग ऑफिसर स्टेन लिंडस्ट्रॉम का बयान भी आया कि इस मामले में टॉप लेवल पर कमीशन दिया गया था. इसके बाद तो ये मामला कुछ और ही गरमा गया है. इधर सीबीआई ने बारह साल पुरानी इस एसएलपी के बारे में बोफोर्स मामले में जांच कर रही है संसद की एक कमैटी को भी इस बारे में बताया था. सीबीआई का कहना है कि 2005 में सरकार की तरफ से इसकी इजाजत नहीं मिली थी, और अब नए बयानों और सुबूतों के आधार पर सीबीआई ने फिर से इजाजत मांगी है और डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) को इस बारे में लिखा है. अब गेंद सरकार के पाले में है, वाड्रा मामले पर पहले ही एक्शन का इंतजार कर रहे सरकार के समर्थकों की नजरें भी इस मामले में सरकार की ही तरफ हैं.