देश के नाम संदेश में बोले राष्ट्रपति, संसद को अखाड़ा बना दिया

नई दिल्ली. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 68 वें स्वतंत्रता दिवस से पहले देश के नाम संदेश दिया है. उन्होंने देशवासियों को संबोधित करते हुए देश से जुड़े कई विषयों पर चर्चा की, लेकिन सबसे पहले उन्होंने संसद की कार्यवाही और गतिरोध का जिक्र किया.
राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, ‘हमारी स्वतंत्रता की 68वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर, मैं आपका और विश्व भर के सभी भारतवासियों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं. मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बलों के सदस्यों का विशेष अभिनंदन करता हूं. मैं, अपने उन सभी खिलाड़ियों को भी बधाई देता हूं जिन्होंने भारत तथा दूसरे देशों में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया और पुरस्कार जीते. मैं, 2014 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी को बधाई देता हूं, जिन्होंने देश का नाम रौशन किया.
मित्रो,
15 अगस्त, 1947 को, हमने राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल की. आधुनिक भारत का उदय एक ऐतिहासिक हर्षोल्लास का क्षण था परंतु यह देश के एक छोर से दूसरे छोर तक अकल्पनीय पीड़ा के रक्त से भी रंजित था. ब्रिटिश शासन के विरुद्ध महान संघर्ष के इस पूरे दौर में जो आदर्श तथा विश्वास कायम रहे वे अब दबाव में थे.
महानायकों की एक महान पीढ़ी ने इस विकट चुनौती का सामना किया. उस पीढ़ी की दूरदर्शिता तथा परिपक्वता ने हमारे इन आदर्शों को, रोष और भावनाओं के दबाव के अधीन विचलित होने अथवा अवनत होने से बचाया. इन असाधारण पुरुषों एवं महिलाओं ने हमारे संविधान के सिद्धांतों में, सभ्यतागत दूरदर्शिता से उत्पन्न भारत के गर्व, स्वाभिमान तथा आत्मसम्मान का समावेश किया, जिसने पुनर्जागरण की प्रेरणा दी और हमें स्वतंत्रता प्रदान की. हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसा संविधान प्राप्त हुआ है जिसने महानता की ओर भारत की यात्रा का शुभारंभ किया.
इस दस्तावेज का सबसे मूल्यवान उपहार लोकतंत्र था, जिसने हमारे प्राचीन मूल्यों को आधुनिक संदर्भ में नया स्वरूप दिया तथा विविध स्वतंत्रताओं को संस्थागत रूप प्रदान किया. इसने स्वाधीनता को शोषितों और वंचितों के लिए एक सजीव अवसर में बदल दिया. उन लाखों लोगों को समानता तथा सकारात्मक पक्षपात का उपहार दिया जो सामाजिक अन्याय से पीड़ित थे. इसने एक ऐसी लैंगिक क्रांति की शुरुआत की जिसने हमारे देश को प्रगति का उदाहरण बना दिया. हमने अप्रचलित परंपराओं और कानूनों को समाप्त किया तथा शिक्षा और रोजगार के माध्यम से महिलाओं के लिए बदलाव सुनिश्चित किया. हमारी संस्थाएं इस आदर्शवाद का बुनियादी ढांचा हैं.
प्यारे देशवासियो,
अच्छी से अच्छी विरासत के संरक्षण के लिए लगातार देखभाल जरूरी होती है. लोकतंत्र की हमारी संस्थाएं दबाव में हैं. संसद परिचर्चा के बजाय टकराव के अखाड़े में बदल चुकी है. इस समय, संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अंबेडकर के उस वक्तव्य का उल्लेख करना उपयुक्त होगा, जो उन्होंने नवंबर, 1949 में संविधान सभा में अपने समापन व्याख्यान में दिया था :
‘किसी संविधान का संचालन पूरी तरह संविधान की प्रकृति पर ही निर्भर नहीं होता. संविधान केवल राज्य के विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका जैसे अंगों को ही प्रदान कर सकता है. इन अंगों का संचालन जिन कारकों पर निर्भर करता है, वह है जनता तथा उसकी इच्छाओं और उसकी राजनीति को साकार रूप देने के लिए उसके द्वारा गठित किए जाने वाले राजनीतिक दल. यह कौन बता सकता है कि भारत की जनता तथा उनके दल किस तरह आचरण करेंगे’? यदि लोकतंत्र की संस्थाएं दबाव में हैं तो समय आ गया है कि जनता तथा उसके दल गंभीर चिंतन करें. सुधारात्मक उपाय अंदर से आने चाहिए.
वीडियो में क्लिक कर सुनें राष्ट्रपति का देश के नाम पूरा संदेश:
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