नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध से संबंधित मामले को संवैधानिक पीठ के समक्ष भेजा दिया है सुप्रीम कोर्ट ने पांच सवाल संवैधानिक पीठ के समक्ष भेजे हैं. अब संवैधानिक पीठ ये तय करेगी कि क्या सबरीमाला मंदिर में मंदिर में महिलाओं को प्रवेश ना करने देना मौलिक अधिकारों का हनन है या नहीं. गौरतलब है कि इससे पहले शनि शिंगणापुर मंदिर में भी प्रवेश को लेकर बवाल हुआ था. भूमाता ब्रिगेड़ की संयोजक तृप्ति देसाई ने शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी. इसके अलावा मुंबई के हाजी अली दरगाह में भी महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवाद हुआ था. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के पास सबरीमाला मंदिर का मामला है जिन्हें कुछ सवालों के जवाब तय करने हैं.
संविधान पीठ तय करेगी कि
1. क्या महिला के बॉयोलाजिकल फैक्टर के आधार पर मंदिर में प्रवेश पर रोक समानता के अ्धिकारों का उल्लंघन करता है ?
2. क्या महिलाओं पर रोक के लिए धार्मिक संस्था में चल रही इस प्रथा को इजाजत दी जा सकती है ?
3. क्या सबरीमाला धार्मिक संस्था की ये रोक संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में है ?
4. क्या अयप्पा मंदिर अलग धार्मिक संस्था है और अगर है तो क्या वो संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का हनन कर सकता है और ऐसे महिलाओं को रोका जा सकता है ?
5. क्या महिलाओं पर रोक केरला हिंदू पब्लिक वर्शिप एंट्री एक्ट का हनन है ?
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 20 फ़रवरी को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने एमिकस क्यूरी सहित संबंधित पक्षों से संवैधानिक पीठ से पूछे जाने वाले सवालों की सूची तैयार करने को कहा था.
पिछले साल 7 नवंबर को केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि यह सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में है. शुरुआत में राज्य की एलडीएफ सरकार ने 2007 में महिलाओं के प्रवेश पर प्रगतिशील रुख बनाए रखा था, जबकि कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने इस फैसले को रद्द कर दिया था.
यूडीएफ का कहना था कि यह 10-50 साल की महिलाओं की मंदिर में प्रवेश के खिलाफ है क्योंकि इस परंपरा का प्राचीन समय से पालन किया जा रहा है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई, 2016 को संकेत दिए थे कि यह इस मामले को 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ को भेज सकता है, क्योंकि यह मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है. कोर्ट का कहना था कि महिलाएं को भी संवैधानिक अधिकार मिले हुए हैं और अगर इसे संवैधानिक बेंच को भेजना पड़ा तो वह इसपर डीटेल आदेश देंगे.
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