नई दिल्ली : एक पति की तलाक़ की याचिका को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा कि अगर पति पत्नी के साथ रहने की कोई उम्मीद नही तो उन्हें बंधन में रखने का कोई औचित्य नही है, क्योंकि लगभग टूट चुकी शादी को बंधन में रखना क्रूरता होगी. पति ने सुप्रीम कोर्ट में निचली अदालत और हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कोर्ट ने ये तो माना था कि साल 2000 से दोनों अलग अलग राह रहे है लेकिन कोर्ट ने कहा था कि लगभग टूट चुकी शादी तलाक़ का आधार नही हो सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में दो पूर्व फैसलों के उदाहरण देते हुए कहा कि भले ही ये तलाक़ का कोई आधार न हो लेकिन शादी के बंधन में जबरदस्ती पति पत्नी को बांधे रखने से कुछ हासिल नही होगा ऐसे में इन्हें तलाक दे देना चाहिए.
दरअसल पति पत्नी 17 सालों से अलग अलग रह रहे थे और पति ने पत्नी पर आरोप लगाया था कि वो उसके बीमार पिता का ध्यान नही रखती जिसके बाद पत्नी घर छोड़ कर चली गई थी. उसके बाद शुरू हुआ कानूनी मुकदमों का दौर. मामला निचली अदालत, हाई कोर्ट से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. जिसके बाद पति की याचिका पर फैसले सुनाते हुए कोर्ट ने तलाक की मंजूरी दे दी.