वडनगर: पीएम बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहली बार अपनी जन्मभूमि वडनगर जा रहे हैं. वही वडनगर जहां मोदी कभी रेलवे स्टेशन पर चाय बेचा करते थे लेकिन आज वो देश की कमान संभाल रहे हैं. एक ओर बचपन की यादें मन में समेटे मोदी अपनी जन्मभूमि पहुंचेंगे तो दूसरी ओर वडनगर भी अपने सुपूत के स्वागत को सजकर तैयार है. वडनगर ने बेहद खास अंदाज में मोदी की जिंदगी को समझाया है लेकिन मोदी की असल पहचान तो उस चाय वाले के के रुप में है जिसने बचपन में चाय की केतली थामकर परिवार संभाला और आज उन्हीं हाथों में देश की कमान है जो पूरे हिन्दुस्तान को संभाल रही है.
वडनगर के जर्रे जर्रे में मोदी के बपचन की यादें आज भी गूंज रही हैं. गली, मोहल्ला तालाब, स्कूल, लाइब्रेरी हर उस जगह को सजाया गया है जो मोदी की जिंदगी से जुडी है और सबसे खास तो वो रेलवे स्टेशन है जहां कभी मोदी के नाजुक हाथों ने पिता का हाथ बंटाने के लिए चाय की केतली थामी थी. कहते हैं कि इंसान कितनी ही बड़ी शख्सियत क्यों ना बन जाए लेकिन वो अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलता. ये वडनगर शहर है. मोदी के जीवन की ज़डें भी इसी शहर से जुडी हैं. ये वडनगर का शर्मिष्ठा तालाब है और इस तालाब से मोदी के जीवन की अहम कहानी जुडी है. बचपन में मोदी इसी तालाब से मगरमच्छ का बच्चा पकड़कर घर ले आए थे.
मोदी प्रधानमंत्री बने तो वडनगर रेलवे स्टेशन की काया भी पलटने लगी. वडनगर रेलवे स्टेशन का विस्तार किया जा रहा है. कंस्ट्रक्शन जारी है मोदी वडनगर आ रहे हैं तो स्टेशन को भी अनोखे अंदाज में संजाया गया है. यहां एक फोटो गैलरी बनाई गई है जिसमें मोदी के बचपन से लेकर चाय पे चर्चा तक का सफर शामिल किया गया है. इंडिया न्यूज की टीम वडनगर रेलवे स्टेशन के उस स्टॉल पर भी पहुंची जहां कभी मोदी चाय बेचा करते थे. वडनगर रेलवे स्टेशन के बाहर भी चाय पर चर्चा नाम से एक टी स्टॉल बनाया गया है. जहां वडनगर के बुजुर्ग युवाओं के साथ बैठकर मोदी के जीवन के संघर्ष की कहानी पर चर्चा कर रहे हैं.
रेलवे स्टेशन की भव्य तैयारियों को कैमरे में कैद कर इंडिया न्यूज की टीम वडनगर के उस स्कूल में पहुंची जहां मोदी ने शुरुआती शिक्षा ली थी. बच्चों से लेकर स्कूल के पूरे स्टॉफ को मोदी के वडनगर आने का इंतजार है. मोदी के स्वागत में स्कूल मैनेजमेंट की ओर से बाजाफ्ता अनाउंसमेंट कर मोदी आगमन और उनके स्वागत की खबर दी जा रही है. वडनगर का लाल और देश के पीएम नरेन्द्र मोदी तीन साल बाद अपनी जन्मभूमि पर लौटेंगे.
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