राइट टू स्पीच के नाम पर आपराधिक मामलों में क्या सरकार के मंत्री या जनप्रतिनिधि पॉलिसी और विधान के विपरीत बयान दे सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामलों को संवैधानिक पीठ के समक्ष भेजा दिया है
नई दिल्ली: राइट टू स्पीच के नाम पर आपराधिक मामलों में क्या सरकार के मंत्री या जनप्रतिनिधि पॉलिसी और विधान के विपरीत बयान दे सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामलों को संवैधानिक पीठ के समक्ष भेजा दिया है. दरअसल बुलंदशहर गैंग रेप मामले में आजम खान के विवादित बयान को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था. इससे पहले कोर्ट से आजम ने बिना शर्त माफी मांग ली थी और कोर्ट ने माफ़ीनामे को स्वीकार भी कर लिया था लेकिन कोर्ट ने कहा था कि राइट टू स्पीच के नाम पर आपराधिक मामलों में क्या सरकार के मंत्री या जनप्रतिनिधि पॉलिसी और विधान के विपरीत बयान दे सकते?
पिछली सुनवाई में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मंत्री पद पर बैठे व्यक्ति राइट टू स्पीच के नाम पर क्या सरकार की पॉलिसी और विधान के विपरीत बयान दे सकता है? सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी हरीश साल्वे ने कहा कि मिनिस्टर संविधान के प्रति जिम्मेदार हैं और वह सरकार की पॉलिसी और विधान के खिलाफ बयान नहीं दे सकते.
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बता दें कि बुलंदशहर गैंग रेप मामले में यूपी के पूर्व मंत्री आजम खान ने विवादास्पद बयान दिया था जिसको लेकर काफी विवाद भी हुआ था. हालांकि बाद में आज़म खान ने अपने बयान के लिए बिना शर्त पछतावे का इजहार किया था जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कई संवैधानिक सवाल उठाए हैं जिसको एग्जामिन किया जा रहा है.