इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के 40 साल, जानिए 3 अक्टूबर की उस रात की पूरी कहानी

3 अक्टूबर 1977 की रात इंदिरा गांधी ने पुलिस हिरासत में गुजारी, ये उनके लिए पहला तजुर्बा था कि उन्हें गिरफ्तार करके इस तरह ले जाया गया था. हालांकि इंदिरा गांधी और संजय गांधी को अगले साल फिर से गिरफ्तार किया गया था

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इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के 40 साल, जानिए 3 अक्टूबर की उस रात की पूरी कहानी

Aanchal Pandey

  • October 3, 2017 4:27 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: 3 अक्टूबर 1977 की रात इंदिरा गांधी ने पुलिस हिरासत में गुजारी, ये उनके लिए पहला तजुर्बा था कि उन्हें गिरफ्तार करके इस तरह ले जाया गया था. हालांकि इंदिरा गांधी और संजय गांधी को अगले साल फिर से गिरफ्तार किया गया था और तब एक हफ्ता तिहाड़ में गुजारना पड़ा था, लेकिन 3 अक्टूबर इस मामले में इसलिए खास था कि ये पहली गिरफ्तारी थी और उन्हें गिरफ्तार करने वाले गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के हाथ पांव फूले हुए थे.
 
इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी हार गई थीं, नई जनता सरकार में चाहे पीएम मोरारजी देसाई हों या होम मिनिस्टर चौधरी चरण सिंह, दोनों ही इंदिरा के केबिनेट में रह चुके थे. ऐसे में इंदिरा को जेल की हवा खिलाने के मकसद को अंजाम देना आसान नहीं था. लेकिन उनके केबिनेट के बाकी सदस्य यानी उनके खिलाफ हारकर कोर्ट में चुनाव जीतने वाले और अब हैल्थ मिनिस्टर राजनारायण और इमरजेंसी में हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार होने वाले इंडस्ट्रियल मिनिस्टर जॉर्ज फर्नांडीज से लेकर इनफोरमेशन मिनिस्टर एलके आडवाणी, कानून मंत्री शांति भूषण और फॉरेन मिनिस्टर बाजपेयी तक इंदिरा को सलाखों के पीछे देखना चाहते थे. वो चाहते थे कि जिसकी वजह से उन्होंने जेल में महीनों गुजारे हैं, वो भी तो जेल जाकर देखे. हालांकि चौधरी चरण सिंह तो 1977 मार्च में सरकार बनते ही इंदिरा को जेल भेजना चाहते थे, लेकिन मोरारजी देसाई कानून के खिलाफ कुछ भी करने को राजी नहीं थे. ऐसे में इंदिरा के खिलाफ भ्रष्टाचार केसेज की जांच के लिए शाह आयोग बनाया गया.
 
 
कई केसों में सबसे अहम जो इंदिरा गांधी के खिलाफ केस था, वो थी जीप स्कैम. रायबरेली के चुनाव में इंदिरा गांधी की मदद के लिए 100 जीपें खरीदी गई थीं, जिनकी कीमत उन दिनों करीबन चालीस लाख थी. राजनारायण ने आरोप लगाया कि वो जीपें कांग्रेस के पैसे से नहीं बल्कि इंडस्ट्रियलिस्ट्स और सरकारी पैसे से खरीदी गई थीं. चौधरी चरण सिंह गिरफ्तारी से पहले अपने केस को मजबूत करना चाहते थे ताकि आसानी से जमानत ना हो सके, साथ ही वो चाहते थे ऐसा सख्त और भरोसमंद पुलिस अफसर, जो गिरफ्तारी के समय के वबाल को आसानी से झेल सके. इसके लिए चुना गया नाम एनके सिंह का, उस वक्त के सीबीआई डायरेक्टर.
 
पहले तारीख तय हुई एक अक्टूबर, लेकिन चरण सिंह की पत्नी ने उस पर वीटो लगा दिया. दरअसल 1977 में 1 अक्टूबर को शनिवार था और चरण सिंह की श्रीमती ने कहा, इस दिन कुछ भी ऐसा करोगे तो फलेगा नहीं. चौधरी साहब ने तारीख बदल दी, वो फोन करने ही वाले थे कि अगला दिन तय कर दो कि उस वक्त उनके  स्पेशल पर्सनल असिस्टेंट और उनके आईपीएस दामाद के एक आईपीएस दोस्त व पूर्व आईबी ऑफिसर विजय करण ने सुझाव दिया कि अगला दिन दो अक्टूबर है यानी गांधी जयंती और उस दिन इंदिरा की गिरफ्तारी वबाल की वजह बन सकती है. चौधरी साहब को बात जम गई और एन के सिंह को रोक दिया गया.
 
इधर मोरारजी देसाई ने लखनऊ की एक प्रेस कान्फ्रेंस में एक बयान देकर अपना सॉफ्ट स्टैंड दिखाया, कहा कि वो नेहरू की बेटी हैं, मेरी बहन की तरह, मैं उनकी इज्जत करता हूं. लेकिन चरण सिंह इंदिरा को सबक सिखाना चाहते थे, इसलिए पीछे हटने को तैयार नहीं थे. मोरारजी ने उन्हें हरी झंडी तो दे दी लेकिन शर्त लगा दी कि एक तो मामला फुल प्रूफ होना चाहिए, दूसरे इंदिरा गांधी के साथ गिरफ्तारी के वक्त अच्छा व्यवहार होना चाहिए, उनके हाथ में हथकड़ी नहीं होनी चाहिए. ये मैसेज एनके सिंह तक पहुंचा दिया गया. तय किया गया गिरफ्तारी शाम को होनी चाहिए ताकि इंदिरा गांधी को एक रात तो कम से कम कस्टडी मे गुजारनी ही पड़े, उनको अगले दिन ही कोर्ट में पेश किया जा सके.
 
तीन अक्टूबर को दोपहर तीन बजे, चरण सिंह के पर्सनल सेक्रेटरी ने सीबीआई डायरेक्टर को फोन किया कि पूछा क्या स्थिति है? वहां से जवाब मिला हम तैयार हैं, लोकल पुलिस को थोड़ा और वक्त चाहिए. एक घंटे बाद सीबीआई टीम निकल चुकी थी. वो 4.45 मिनट पर इंदिरा के आवास 12, विलिंगडन क्रीसेंट पहुंच चुके थे, लोकल पुलिस पहले ही पहुंच चुकी थी. दरअसल इंदिरा गांधी की हार के बाद उनसे उनका घर वापस लिया जा चुका था, उस वक्त तक पूर्व पीएम के लिए आवास की व्यवस्था नहीं थी तो इंदिरा के मित्र मोहम्मद युनुस ने उन्हें अपना घर ऑफर किया, वो इसी आवास में रहते थे. सरकार ने इस बंगले में इंदिरा को रहने की इजाजत दे दी, लेकिन उनसे मार्केट रेट पर किराया भी भरने को कहा.
 
ठीक दस मिनट बाद यानी 4.55 मिनट पर सीबीआई एसपी ने इंदिरा के आवास पर दस्तक दी, इंदिरा का कोई सहायक बाहर आया तो सीबीआई एसपी ने कहा- “We are here to escort Mrs Gandhi into custody under Section (5) 2 of the Prevention of Corruption Act.” सीबीआई जैसे ही अंदर गई, फौरन संजय गांधी तेजी से बाहर निकल गए. दरअसल उस वक्त संजय और मेनका लॉन में बैडमिंटन खेल रहे थे. इंदिरा शाह कमीशन की रिपोर्ट को लेकर अपने वकीलों से डिसकस कर रही थीं. इधर इंदिरा गांधी को सीबीआई टीम ने एक घंटे का वक्त दे दिया, ताकि वो निकलने के लिए तैयार हो सकें.
 
इधर उसी वक्त चौधरी चरण सिंह ने सीबीआई की एफआईआर रिपोर्ट पढ़ना शुरू कर दिया, पढ़ते ही वो गुस्सा हो गए और चिल्लाए- पास बुलाओ उन्हें, तो उनका पर्सनल असिस्टेंल घबराकर बोला—किसे सर?  चरण सिंह चिल्लाए—उन सीबीआई वालों को, ये वो केस नहीं है, जिन पर हम अभी एक्शन ले सकें. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. इसी बीच मेनका गांधी ने अपनी मैगजीन सूर्य़ा के एडीटर को भी फोन कर दिया, और उस एडीटर ने दुनियां भर के उन तमाम विदेशी रिपोर्टर्स को फोन कर दिया, जिनके कॉरस्पोंडेंट दिल्ली में थे. आग की तरह खबर फैलती चली गई.
 
इधर यूथ कांग्रेस के प्रेसीडेंट टाइटलर ने सैकड़ों नौजवानों को इंदिरा के घर पहुंचने के कहा ताकि गिरफ्तारी के खिलाफ माहौल बनाया जा सके. एक एक करके नेता और पत्रकार इंदिरा के घर पर जुटने लगे. यशपाल कपूर, ब्रह्मानंद रेड्डी, राधारमन, कमलापति त्रिपाठी, शंकर दयाल शर्मा, एआर अंतुले, एचकेएल भगत, मोहसिना किदवई और वंशी लाल जैसे तमाम दिग्गज वहां पहुंच गए. इंदिरा के वकील फ्रेंक एंथोनी तो पहले से ही वहां थे, जिनको बाद में कांग्रेस ने एंग्लो इंडियन लोकसभा सदस्य मनोनीत किया था.
 
उसने सीबीआई एसपी से एफआईआर कॉपी मांगी, जिसके लिए ये कहकर मना कर दिया गया कि हमने इंदिराजी को पढ़वा दी है. इधर परेशान चरण सिंह एक एक पल की रिपोर्ट ले रहे थे, उन्होंने फौरन सीबीआई डायरेक्टर एनके सिंह को फोन लगाकर कमजोर केस बनाने की वजह से नाराजगी व्यक्त की और फौरन इंदिरा आवास पर पहुंचने को कहा, साथ ही ये भी कहा कि इंदिरा को हरियाणा के बड़कल लेक गेस्ट हाउस में ले जाया जाए. इसी बीच राजीव गांधी भी आ चुके थे, संजय गांधी भी नेताओं के साथ बाहर मौजूद थे.
 
इधर इंदिरा तय कर चुकी थीं कि गिरफ्तारी पर पक्का माहौल बना देना है. हालांकि उन्हें एनके सिंह ने गिरफ्तारी के बाद ऑन स्पॉट बेल की भी बात कही, लेकिन इंदिरा ने मना कर दिया. 6.05 बजे इंदिरा बाहर आईं और बोलीं कि हथकडियां कहां है, लगाओ. सीबीआई अधिकारियों और पुलिस ने बताया कि हथकडियों के लिए मना किया गया है, लेकिन इंदिरा नहीं मानी और हथकड़ियां लगाने के लिए अड़ी रहीं. 7.30 बजे तक हथकड़ियों के लिए हंगामा होता रहा. बाहर नारे लगते रहे. फायनली करीब 8 बजे इंदिरा आईं और वैन में बैठ गईं, फिर वैन में खड़ी हो गईं और वहीं से मीडिया वालों को सम्बोधित करने लगीं.
 
अगले दिन उन्हें गुजरात जाना था, वहां के लोगों से माफी मांगी और कहा कि—मैं देश की सेवा करती रहूंगी, ये मैटर नहीं करता कि मेरे ऊपर क्या चार्ज लगाए गए हैं लेकिन ये गिरफ्तारी पूरी तरह से राजनीतिक है. एक नेता ने फौरन खुद को कार के आगे गिरा लिया, लेकिन बाद मे हट गया. राजीव और संजय फौरन अलग अलग गाडियों की ड्राइवर सीट्स पर बैठ गए और बाकी के नेता उन गाडियों में बैठ गए. पुलिस के काफिले के पीछे कांग्रेसियों का काफिला चलने लगा. इधर इंदिरा के विवादित योग गुरू धीरेन्द्र ब्रह्मचारी इंदिरा आवास पर ही रुक गए.
 
काफिला बड़कल लेक गैस्ट हाउस की तरफ बढ़ने लगा, कि झील और फरीदाबाद के बीच का एक रेलवे फाटक बंद मिला, दो ट्रेन गुजरनी थीं और आधे घंटे तक फाटक नहीं खुलना था. ऐसे में इंदिरा वैन से उतरकर एक पुलिया पर बैठ गईं. उन्होंने अपने वकील को भी बुला लिया और फिर अधिकारियों से विरोध जताया कि कानूनन उन्हें हरियाणा में नहीं रखा जा सकता. काफी देर तक मशक्कत चली, इंदिरा ने आगे जाने से साफ मना कर दिया. जिद की कि उन्हें दिल्ली में ही कहीं रखना चाहिए, तब उन्हें वापस लाया गया और रात दस बजे किंग्जवे कैम्प की पुलिस लाइन में बने गजेटेड ऑफीसर्स मैस में लाया गया. इंदिरा के साथ निर्मला देशपांडे भी एक तरह से जबरन आईं और उन्ही के साथ वहां रुकीं. सुबह उनको एक मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश किया गया, हजारों कांग्रेस कार्य़कर्ता वहां इकट्ठा हो चुके थे. पुलिस ने आंसू गैस तक छोड़ी, इधर कोर्ट ने इंदिरा को फौरन जमानत दे दी.
 
 
अगले साल दिसम्बर में इंदिरा के साथ संजय को फिर से जीप स्कैम में गिरफ्तार करके एक हफ्ते के लिए तिहाड़ भेज दिया गया. एक हफ्ते बाद वो बाहर आए. माना जाता है कि इंदिरा को दो दो बार गिरफ्तार करके जनता पार्टी सरकार ने जनता का इंदिरा के प्रति इमरजेंसी का गुस्सा सुहानुभूति की लहर में बदल दिया, वैसे भी जनता पार्टी के नेताओं की आपसी खींचतान के चलते लोग फिर से इंदिरा में भरोसा जताने लगे थे. ऐसे में इंदिरा की तीन अक्टूबर की रात इंदिरा के इतिहास में एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक बदलाव लेकर आई थी.

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