ट्वीटर से दूध-दवा तक पहुंचाने वाले प्रभु 3-3 ट्वीट के बाद भी एलफिंस्टन पुल ना बना सके

मुंबई. सोशल नेटवर्किंग साइट ट्वीटर पर ट्रेन में सफर कर रहे मुसाफिरों के हनुमान बने सुरेश प्रभु भले ट्वीट पर जरूरतमंद बच्चों के लिए दूध, दवा और डॉक्टर तक पहुंचाते रहे लेकिन फरवरी से ही एक पैसेंजर द्वारा एलफिंस्टन पुल पर भगदड़ की आशंका पर कुछ ऐसा ना कर सके जो मुंबई में 22 लोगों की जान बचा पाती.
बैंडिश सतरा नाम के एक ट्वीटर यूजर ने 2 फरवरी को ही तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु को टैग करते हुए लिखा था कि एलफिंस्टन की तरफ जाने वाले परेल स्टेशन ओवरब्रिज पर गंभीर खतरा है. इससे स्टैंपीड हो सकता है और जाने भी जा सकती हैं.

इस ट्वीट के बाद रेल मंत्रालय ने ऑफिशियल ट्वीटर हेंडल से डीआएम मुंबई सेंट्रल को इस मामले के बारे में अवगत कराया और लिखा कि संबंधित अधिकारी को इस मामले में जानकारी दे दी गई है. इसके बाद मुंबई सेंट्रल रेलवे ने ट्वीट में जानकारी दी कि हमने इस मामले को एसआरडीएससी को सूचना दे दी गई है.

शख्‍स ने इस मामले को लेकर फरवरी महीने में तीन ट्वीट किए गए थे जिसमें तत्‍कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु को टैग किया गया था. इसके बाद अगस्‍त में भी एक ट्वीट कर शख्‍स ने कहा था कि अभी तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है. आखिरी ट्वीट घटना के बाद किए गए हैं जिसमें इस शख्स ने लिखा है कि आखिरकार भगदड़ मच ही गई. जिस समस्या के लिए सचेत किया जा रहा था उस पर कोई कदम नहीं उठाया गया.

बता दें कि मुंबई में परेल-एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन के पास बने पुल पर ज्यादा भीड़ की वजह से मची भगदड़ में 22 लोगों की मौत हो गई. यह घटना शुक्रवार सुबह 10 बजकर 45 मिनट के करीब हुए यह हादसा हुआ. आशंका जताई जा रही है कि मृतकों की संख्या और अधिक हो सकती है.
इस पुल को लेकर कई लोगों ने पहले भी शिकायत की थी और इसके जर्जर होने के शिकायत कर चुके थे. हादसे से गुस्साए यात्रियों और आस पास के लोगों ने कहा कि यह पुल काफी पुराना है और यह काफी संकरा है. यह इतना मजबूत नहीं था कि काफी सारे लोगों को एक साथ संभाल सके.
बता दें एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर तीन फुटऑवर ब्रिज हैं, जिसमें ये सबसे पुराना है. सौ साल से भी ज्यादा पुराना है. साल 1911 में लॉर्ड एलफिंस्टन के नाम पर ये रेलवे स्टेशन बना था. इसके दो साल बाद ही यानि 1913 में फुटओवर ब्रिज का निर्माण हुआ. अनुमान के मुताबिक इस ब्रिज से हर दिन 3 लाख से ज्यादा लोग गुजरते हैं.
ब्रिज की मियाद और लोगों की बढ़ती क्षमता देखते हुए इस रेलवे स्टेशन पर दूसरा ब्रिज बनाने की मांग की गई लेकिन ब्रिज नहीं बना, अलबत्ता रेलवे स्टेशन का नाम जरूर बदल दिया गया. इसी साल 5 जुलाई को वेस्टर्न रेलवे ने एक नोटिफिकेशन जारी कर अंग्रेजों के जमाने के इस स्टेशन का नाम प्रभादेवी कर दिया.
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