नई दिल्ली. 29 सितंबर 2016 की तारीख की याद आते ही हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. हो भी क्यों न क्योंकि इसी दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान की नापाक जमीं पर जाकर सर्जिकल स्ट्राइक कर उसके नापाक इरादों को नेस्तानाबूत कर दिया था.
29 सिंतबर 2016 को करीब सुबह 3 बजे भारतीय जवानों के एक दल की वीरता ने पूरी दुनिया में भारती की सॉफ्ट छवि को बदल कर रख दिया था. इंडियन आर्मी ने पाकिस्तानी सीमा में घूस सर्जिकल स्ट्राइक कर उरी अटैक का मुंहतोड़ जवाब दिया था. तो चलिये जानते हैं भारत के वीर जवानों ने कैसे उसी के घर में घूस कर कैसे पाकिस्तानी आतंकियों को मौत के घाट उतारा था.
न्यूज एक्स के साथ खास बातचीत में सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले जाबांज योद्धाओं ने बताया कि कैसे उन्होंने भारत में किये गये विभिन्न आतंकवादी हमलों का बदला पाकिस्तान के ऊपर सर्जिकल स्ट्राइक करके लिया.
सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले जवान ने बताया कि इस हमले को अंजाम देने के लिए कई टीमें बनीं थीं. इन्हें अलग-अलग रास्तों से जाना था. सीमा पार करते वक्त सबसे पहली जो टारगेट के करीब पहुंची थी, वो टीम 2-2.5 किमी की हवाई दूरी पर थी और जमीन की दूरी करीब 4-4.5 किमी थी. वहीं, दूसरी टीम की हवाई दूरी 3 से 3.5 किलोमीटर थी और उनकी जमीन की दूरी लगभग 5 से 6 किलोमीटर थी.
सीमा पार करने के बाद पहली टीम की हवाई दूरी करीब चार किलोमीटर थी. 28 सितंबर को करीब 2 बजे स्पेशल टीम रेकी टीम से साइट पर मिली और उन्होंने टीम को टारगेट के बारे में दोबारा समझाया. टारगेट काफी तीव्र ढलाना वाला था, जिसके बारे में भारतीय जवानों को पहले ही बता दिया गया था.
घुसपैठ का रास्ता कैसे तय किया गया-
टारगेट तक पहुंचने के लिए दो-तीन रास्तों को सेलेक्ट किया गया ताकि अगर टीम एक रूट से जाए, तो वो दूसरी रूट से रिटर्न हो सके. इस तरह से सीमा पार जाने का रास्ता और वहां से वापस आने का रास्ता दोनों अलग थे. ऐसा इसलिए किया गया ताकि कोई भी टीम को आसानी से टारगेट नहीं कर सकेगी. किस जगह हमारी टीम कैसे और कब जाएगी ये सब हमने रेकी कर पहले ही तय कर लिया था.
कुछ टारगेट के लिए दो-तीन रास्तों को सेलेक्ट किया गया और कुछ टारगेट के लिए तीन-चार रास्तों के सेलेक्ट किया गया. टीम उस टारगेट के नजदीक आ गई, जिसे रेकी किया जा चुका था. भारतीय जवान इन्हीं रास्तों से होकर गई और उन जगहों को चिन्हित कर वापस आ गई, जहां उन्हें फायर करना था. जवानों ने उन सभी को चिन्हित कर लिया कि कहां उन्हें सपोर्ट मिलेगा कहां. आखिरकार ये निर्णय ले लिया गया कि स्ट्राइक टीम का नेतृत्व कहां होगा. ये सब कुछ रेकी और डिस्कशन के बाद निश्चित हुआ.
स्ट्राइक करने वाली टीम का हिस्सा रहे जवान ने पूरे मिशन के बारे में बताया कि जिस रूट से इस मिशन को अंजाम देना था, वो काफी कठिन था. नीचे की ओर चलने पर 65 से 70 डिग्री का ढालान था. नीचे उतरने के समय जवानों ने रस्सी के सहारे अपने आप को सुरक्षित रखा. जवान तवोर और एम-4 जैसी राइफलों, ग्रेनेड्स, स्मोक ग्रेनेड्स से लैस थे. साथ ही उनके पास अंडर बैरल ग्रेनेड लॉंचर, रात में देखने के लिए नाइट विजन डिवाइसेज और हेलमेट माउंटेड कैमरा भी थे.
भारत की स्पेशल फोर्स काफी आराम से छोटी संख्या में चली गई. हालांकि, सेना को 100 से 150 मीटर की दूरी तय करने में एक घंटे का समय लगा. कारण कि रास्ते में काफी घने जंगल और झरने थे. सैनिकों को आगे बढ़ने से पहले ही पूरी तरह से यकीन था आगे कुछ नहीं होगा. वहां सिर्फ माइन्स का डर था. मगर विशेष दल ने टारगेट तक पहुंचने के लिए सूझबूझ से कदम बढ़ाये.
टीम ने मार्ग का पता लगाने के लिए कड़ी मेहनत की, जो दुश्मन इसके बारे में सोच भी नहीं सकते थे. दुश्मन के इलाकों में भारतीय सेना काफी सतर्कता बरती ताकि दुश्मनों को सेना के मुवमेंट के बारे में जरा भी भनक न लगे. रास्ते में सिर्फ घने जंगल ही नहीं थे, बल्कि कुछ खुले इलाके भी थे. दुश्मनों की नजर टीम पर न पड़े इसलिए खुले इलाकों को टीम ने रात के वक्त पार किया.
टीम ने सीमा पार करने के लिए चलकर पार करना ही बेस्ट नहीं माना, बल्कि टीम ने रेंगते हुए सीमा पार करना सबसे उचित समझा. पूरे घटनाक्रम में सबसे महत्वपूर्ण और आश्चर्य की बात ये थी कि विशेष बल किसी भी कीमत पर इस अवसर को चूकने को तैयार नहीं थी. टीम हमेशा अपने दिमाग मे ये बात रखकर चलती थी कि कोई उन पर नजर रख रहा है. जब तक इलाके को कवर नहीं किया गया तब तक जवान आगे नहीं बढ़े. पूरी तरहसे दुश्मनों की उपस्थिति का पता लगाने के बाद ही जवान आगे बढ़े.
टीम ने अपनी यात्रा 19 डिविजन से शुरू की थी और पोओके की लीपा घाटी में पहुंच गई. ये घाटी काफी बड़ी घाटी थी, जहां पर पर्याप्त रक्षा तैनाती थी. दरअसल, ये टेररिस्ट लॉन्चिंग पैड था, ठीक हमारे कश्मीर घाटी की तरह. आगे बढ़ने के दौरान टीम माइन्स बिछे एरिये को पार कर बीच में आ गई थी. वहां केबल थी, जो उन्हें परेशान कर रही थी. अगर जवान विस्फोटक माइन्स पर गिरते तो हो सकता था कि माइन्स विस्फोट कर जाए. इसलिए जवान काफी सावधानी से कदम बढ़ा रहे थे.
आगे जवान ने बताया कि हम सब मॉनिटर कर रहे थे कि जिससे हमें पाकिस्तान की स्थितियों का पता चल रहा था. हम लोग अपने टारगेट के काफी करीब से मॉनिटर कर रहे थे. उनकी हर गतिविधियों पर हमारी टुकड़ियों की नजर थी. पठानी सूट और ट्रैकसूट में भी कुछ लोग नजर आए.
जवानों को 29 सिंतबर को करीब 3 बजे यूएवी वैन की हल्की-हल्की आवाज सुनाई दी. फायरिंग के लिए कमांडर ने बता दिया था कि गो बोलते ही फायरिंग शुरू हो जाएगी. सबसे पहले जवानों ने संतरी के उपर फायर की. उसके बाद रॉकेट लॉन्चर से कुछ और टारगेट पर फायरिंग हुई. रॉकेट लॉन्चर के फायर के बाद उनके बंकर में आग लग गई, जैसे वहां कैरोसिन रखा हो.
उनकी ओर से भी मोर्टार और हैवी वैपेंस फायर किए गए थे. हमारे दिमांग में बस केवल एक बात चल रही थी हमें बदला लेना है. उनको किसी भी तरह से हमारे लोकेशन की जानकारी नहीं मिल पाई. उनके फायर हम लोगों के उपर से निकल जाते थे. जम हम अपने एरिए में आए तो हमने अपने बंदों की पूरी चेकिंग की कि हम सभी हैं या नहीं. हमारे निकलने के बाद वहां एक धमाका भी हुआ था.
इस ऑपरेशन में माइन्स ब्लास्ट में एक सहयोगी को चोट भी आई थी. माइन्स ब्लास्ट होने के कारण सहयोगी के पैर में चोट आ गई थी. ऑपरेशन के बाद वापस आते समय हम अपने बंदे को लेकर आए. ऊपर आते ही हेलिकॉप्टर आ गया था, जो चोटिल सहयोगी को लेकर निकल गया.
हर टीम में 20-30 लोग थे. ऑपरेशन के बाद कई सहयोगी आकर हमको बधाई दी. बिग्रेड में रूकने के बाद सभी लोग हमे अलग नजर से देख रहे थे. सभी बोल रहे थे गुड सर, बहुत अच्छा काम किया. ब्रिगेडियर साहब भी बधाई और मुबारक बाद दिए. जवानों ने वहां के नागरिकों पर किसी तरह का हमला नहीं किया.