जन्मदिन विशेष : शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने ब्रिटिश असेंबली में फोड़ा था आगरा में बना बम

नई दिल्ली : आज शहीदे-आजम के नाम से मशहूर भगत सिंह की 110वीं जयंती है. ये तो सब जानते हैं कि भगत सिंह ने 24 साल की छोटी सी उम्र में इंकलाब का नारा बुलंद करते हुए ब्रिटिश हुकूमत की नाक में दम कर दिया था. लेकिन इस बात को बेहद कम लोग जानते हैं कि भगत सिंह ने दिल्ली की ब्रिटिश असेंबली में जो बम फोड़ा था, वो आगरा में बनाया गया था.
भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 को एक जाट सिक्ख परिवार में ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले में बंगा गांव में किशन सिंह और विद्यावती के घर में हुआ था. उनके जन्म उनके पिता और दो चाचा, अजित सिंह और स्वर्ण सिंह जेल में थे, जिनको रिहा करने की बात चल रही थी. तो नन्हें भगत सिंह को बचपन से ही अपने घर में देशभक्ति का माहौल मिला.
अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था. हालांकि इस समय भगत सिंह की उम्र केवल 12 साल थी.  इस हत्याकांड की खबर मिलते हीं वे अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गए थे, वे 14 वर्ष की आयु से ही क्रान्तिकारी समूहों से जुड़ने लगे. लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की.
काकोरी काण्ड में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ सहित 4 क्रान्तिकारियों को फाँसी व 16 को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक आक्रोशित हो गए कि वो चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड गये और उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन.
भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जेपी सांडर्स को मारा था. इस कार्रवाई में क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी. क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने वर्तमान नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे. बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी.
भगत सिंह ने केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया. जिसके फलस्वरूप इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया.
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