नई दिल्ली. पिछले कुछ दिनों से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छेड़खानी की घटनाओं के मद्देनजर छात्राएं प्रदर्शन कर रही हैं. कैंपस में छेड़छाड़ के खिलाफ इस बार छात्राओं ने विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ हल्ला बोल दिया है. पुलिस की लाठी खाने के बाद भी छात्राओं की आवाज दबी नहीं है और लगातार लड़कियों के लिए कैंपस को सुरक्षित बनाने की मांग कर रही हैं.
बनारस से लेकर दिल्ली तक छात्राएं अपनी सुरक्षा के अधिकार के लिए आवाज बुलंद कर रही हैं. जब छेड़छाड़ की घटनाओं को रोकने के लिए छात्राओं ने कैंपस में सुरक्षा के अधिकार की मांग की, तो पुलिस ने लाठियां बरसा दीं. वहीं, बीएचयू के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कहा कि छात्राओं को रात में बाहर नहीं जाना चाहिए.
हफिंगटन पोस्ट में छपी रिपोर्ट की मानें तो बीएचयू का हॉस्टल छात्राओं के लिए किसी कैदखाने से कम नहीं है. बीएचयू के हॉस्टल रूल्स में महिला सुरक्षा के नाम पर छात्राओं को दबा कर रखा जा रहा है. यहां ऐसा नियम है कि रात दस बजे के बाद मोबाइल इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है. इतना ही नहीं, छात्राओं को हॉस्टल में नॉन वेजिटेरियन भोजन खाने की भी मनाही है. और तो और लड़कियां शॉर्ट ड्रेस और स्कर्ट भी नहीं पहन सकतीं.
हैरान करने वाली बात ये है कि बीएचयू की हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों से एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर भी करवा लिये जाते हैं, जिसमें लिखा होता है कि वे किसी भी विरोध-प्रदर्शन या आंदोलन में शामिल नहीं होंगी. एक निश्चित समय पर लड़कियों को लाइब्रेरी में जाने की भी इजाजत नहीं है. कुलपति का मानना है कि रात में पढ़ाई करने वाली लड़कियां अनैतिक होती हैं.
मगर यहां लड़कों पर ठीक इसी तरह के नियम-कानून लागू नहीं होते. उनके लिए बीएचयू में नियम-कानून थोड़े से अलग हैं. हालांकि, ऐसे प्रतिबंध सिर्फ बीएचयू तक ही सीमित नहीं हैं. बल्कि देश में ऐसे कई विश्वविद्यालय और संस्थान हैं जहां लड़कियों के साथ लड़कों के मुकाबले दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है. उन्हें कॉलेजों-हॉस्टल्स में ऐसे रहने पर मजबूर किया जाता है जैसे वो बच्चे हों.
कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज को सुरक्षित बनाने की बजाय सुरक्षा के नाम पर ऐसे नियम कानून बनाये जाते हैं जो स्टूडेंट्स के विकास को पीछे की ओर धकेलते हैं. कहा जाए तो सुरक्षा के नाम पर लड़कियों को बंधन में रखने का एजेंडा पूरे भारत के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में चलाया जाता है. हॉस्टल्स के कड़े नियम अक्सर छात्राओं की आवाज को मौन रखने के लिए बनाये जाते हैं. ये सब उनकी सुरक्षा के नाम पर होता है.
अगर आप देश के कॉलेजों के बारे में ज्यादा जानने की कोशिश करेंगे तो आप पाएंगे कि अधिकतर जगह लड़कों के लिए पूरी आजादी होती है, वहीं लड़कियों को पाबंदियों में रखा जाता है. तो चलिये हम आपको देश के कुछ टॉप कॉलेज-यूनिवर्सिटीज में लड़कियों के लिए बने हॉस्टल्स के नियम-कानून पर नजर डालते हैं-
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लड़कियों को कैंपस से बाहर जाने की इजाजत नहीं है. वे सिर्फ रविवार के दिन ही बाहर जा सकती हैं. अगर लड़कियों को सप्ताह के बीच में ही बाहर जाने की जरूरत पड़ती है तो उन्हें पहले पैरेंट्स से एक लेटर लिखवाना होता है उस पर उनका हस्ताक्षर होता है और उसे फैक्स के जरिये एक दिन पहले कॉलेज में जमा करना होता है.
अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में लड़कियों के लिए शाम 6.30 बजे के बाद कर्फ्यू लग जाता है. यानी कि वे इसके बाद अपने हॉस्टल्स से बाहर नहीं निकल सकती. हालांकि, लड़कों के लिए यहां ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है.
जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी
दिल्ली के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में कैंपस से बाहर रहने की डेडलाइन शाम 7.45 है. मगर वहीं लड़के रात दस बजे तक बाहर रह सकते हैं. यहां तक कि जामिया के वूमन हॉस्टल्स में पीएचडी स्टूडेंट्स भी वो इस डेडलाइन के बाद बाहर नहीं रह सकती. मगर फिल्ड वर्क में उन्हें थोड़ी रियायत दी जाती है.
हालांकि, पीएचडी की छात्राओं को फिल्ड वर्क के लिए रिसर्च सुपरवाइजर की सिफारिश पर एक दिन पहले लीव का अप्लीकेशन लगाना होता है. इसके लिए छात्राओं को अपने हेड से हस्ताक्षर करवाकर उन्हें छु्ट्टी से पहले डीन के विभाग में जमा करना होता है. अन्य दिनों में 7 दिनों से अधिक छुट्टियां लेने के लिए यही प्रक्रिया अपनानी होती है.
फर्ग्यूसन कॉलेज
पुणे का फर्ग्यूसन कॉलेज भी लड़कियों और लड़कों में अंतर करता है. इस कॉलेज के हॉस्टल में लड़कियों को रात 8 बजे तक हॉस्टल में रिपोर्ट करना होता है. जबकि लड़कों को रात दस बजे तक की छूट होती है. इससे भी बड़ी बात ये है कि रात दस बजे के बाद लड़कियों को मोबाइल इस्तेमाल करने की मनाही होती है.
हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों के लिए हॉस्टस के मेस से खाना खाना भी अनिवार्य है, मगर लड़कों के लिए ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है. वो जहां चाहें खा सकते हैं.
श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स
दिल्ली का प्रतिष्ठित श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में भी नियम-कानून को लेकर लड़के-लड़कियों में भेदभाव नजर आता है. कैंपस में लड़कियों को 8 बजे के बाद जाने की इजाजत नही हैं, वहीं लड़कों के लिए ये समय सीमा रात 10 बजे की है. हैरान करने वाली बात ये है कि इसके पीछे की अवधारणा ये है कि महिलाओं को सुरक्षा की जरूरत होती है, मगर पुरुषों को नहीं.
इतना ही नहीं, कॉलेज कैंपस की मर्यादा, नियम कायदे और कॉलेज स्टॉफ से अच्छे से व्यवहार को लेकर लड़कियों के लिए एक लंबा चौड़ा नियमावली और दिशानिर्देश है, वहीं लड़कों के लिए ऐसे कोई भी निर्देश नहीं हैं. लड़कियों से कैंपस और हॉस्टल के डायनिंग हॉल, विजिटर्स रूम और कॉमन जगहों पर जाने के लिए भी अच्छी तरह से ड्रेस में जाने की अपेक्षा की जाती है.
मिरांडा हाउस
दिल्ली के मिरांडा हाउस में लड़कियों को छुट्टी लेने या रात में बाहर रुकने के लिए लीव बुक पर बाहर जाने की वजह का जिक्र करना होता है. यहां उनके लोक गार्जिनय का सिग्नेचर भी लीव बुक पर होता है. अगर कोई चाहे कि सिर्फ पैरेंट्स के फोन करवा दे तो इससे कॉलेज प्रशासन नहीं मानती है. यहां सिर्फ पैरेंट्स को ही अपनी लड़कियों को रात भर बाहर रखने की इजाजत है. महीने में 6 रातें हीं लड़कियों को बाहर रहने की इजाजत है.
हिंदू कॉलेज
एक छात्रा की मानें तो पेपर पर छात्र और छात्राओँ के लिए नियम कानून समान हैं, मगर व्यवहार में कुछ और ही है. कॉलेज में लड़कियों को लिए रात 8 बजे की डेडलाइन है, जिसे सख्ती से पालन करना होता है. यहां लड़कों और लड़कियों के लिए बने नियमों में भी मनमानी है. दिल्ली यूनिवर्सिटी और यूजीसी की गाइडलाइन के मुताबिक, गर्ल्स हॉस्टल में हॉस्टल कमिटी भी नहीं है.
लेडी श्री राम कॉलेज
यहां के छात्रावास के नियम ज्यादा टफ नजर नहीं आते. हॉस्टल की अध्यक्ष और तीसरे वर्ष के पत्रकारिता की छात्रा के मुताबिक, वे अन्य डीयू कॉलेजों से बेहतर मानती हैं अपने कैंपस को. उन्हें सप्ताह में देर रात आने और रात में बाहर ठहरने की कई बार इजाजत मिलती है.
लड़कियों के लिए भले ही 7.30 तक की डेडलाइन हैं, मगर रात 10 बजे तक स्टूडेंट्स को बाहर रहने की मौखिक इजाजत है. हालांकि, यहां छात्राओं का कहना है कि यहां हॉस्टल बुक पर स्टूडेंट्स से सिग्नेचर करवा लिया जाता है, वो भी एक रिकॉर्ड के लिए. यहां पर ड्रेस को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है. यहां और कॉलेजों से बेहतर माहौल है. फर्स्ट ईयर की छात्रा को यहां लोकल गार्जियन से परमिशन लेने की जरूरत होती है, मगर सेकेंड और थर्ड ईयर की छात्रा को सिर्फ वार्डन को सूचित करना होता है.
IIMC ढेंकनाल
IIMC ढेंकनाल की प्रोफेसर मृणाल चटर्जी बीएचयू की घटना की आलोचना करती हुईं कहती हैं कि उनके यहां लड़कों और लड़कियों के लिए कैंपस की समय सीमा समान है. दोनों को 9.30 बजे तक कैंपस में आ जाना होता है. उनका कहना है कि स्टूडेंट्स की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए जो बनता है उसे करना चाहिए. कैंपस को दोनों को लिए सेफ होना चाहिए.