BHU केसः कमिश्नर ने चीफ सेक्रेटरी को सौंपी रिपोर्ट, यूनिवर्सिटी प्रशासन को ठहराया जिम्मेदार

बनारसः बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) छेड़छाड़ और लाठीचार्ज केस की जांच कर रहे वाराणसी के कमिश्नर नितिन गोकर्ण ने मुख्य सचिव राजीव कुमार को प्राथमिक जांच रिपोर्ट सौंप दी है. इस रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. जांच रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिवर्सिटी प्रशासन ने पीड़ित छात्रा की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया और प्रशासन उस समय स्थिति को संभालने में भी नाकाम रहा.
दरअसल शांत सा रहने वाला बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में बना हुआ है. एक छात्रा से हुई छेड़खानी के विरोध में यूनिवर्सिटी की छात्राएं अब एकजुट हो गई हैं. यह मामला सिर्फ एक छात्रा से छेड़खानी का ना रहकर अब सभी छात्राओं से जुड़ चुका है. मतलब साफ है, छात्राओं की जायज मांग को लेकर ही इतना हंगामा बरपा हुआ है. इसी बीच छात्राओं के बयान भी बीएचयू प्रशासन की कलई खोल रहे हैं और बता रहे हैं कि बीएचयू में पढ़ाई कितनी मुश्किल भरी राह होती है, मगर सिर्फ छात्राओं के लिए.
बीएचयू की छात्राएं पूछती हैं कि क्यों उनको अपना हक मांगने की सजा मिल रही है. छात्राओं का आरोप है कि कैंपस में ऐसा माहौल है कि जो भी अपनी आवाज उठाता है उसको या तो कॉलेज से बाहर निकाल दिया जाता है या बात वापस लेने के लिए दबाव बनाया जाता है. कुछ ऐसा ही उनके साथ भी हो रहा है.
दबी जुबान में छात्राओं से हॉस्टल खाली करने के लिए कहा गया है. ऐसा नहीं करने पर देख लेने की धमकियां दी जा रही हैं. इन सबसे इतर बीएचयू प्रशासन स्टूडेंट्स पर दबाव बना रहा है. प्रशासन छात्रों से मीडिया में उनके पक्ष में बात रखने को कह रहा है. ऐसा इसलिए नहीं कि हकीकत यही है, ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें चेतावनी दी जा रही है कि उनके पक्ष में बात की जाए.
बीएचयू छात्राओं का आरोप है कि कैंपस में लड़कियों के साथ छेड़खानी बेहद आम बात है. दिन में शांत सा दिखने वाला बीएचयू कैंपस रात होते ही मनचलों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है. मनचले खुलेआम छात्राओं से छेड़छाड़ करते हैं. जो बात सबसे हैरान करने वाली है, वो यह है कि कैंपस में तैनात सिक्योरिटी गार्ड भी मनचलों के आगे बौने साबित हो जाते हैं.
छात्राएं शिकायत करने प्रशासन के पास जाती हैं तो उन्हें चुप रहने के लिए कहा जाता है. इन सबसे थक-हारकर आखिर में छात्राएं ना बदलने वाले इस कड़वे सच को बर्दाश्त करना ही अपनी नियति मान लेती हैं.
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